kavita sawan ki bund by kamal sewani
सावन की बूँद
सावन की रिमझिम बूँदें जब ,
झरतीं नील गगन से ।
शस्य रूप अवलोकित होता ,
वसुधा के कण-कण से।।
शुष्क पड़े सरवर का जल तल ,
यौवन मद उफनाता ।
नील सरोरुह प्रस्फुटित हो ,
रूपवैभव बिखराता ।।
जलचर , थलचर , नभचर सबकी,
खिल - सी उठती बाँछें ।
होते अतिशय मुग्ध मगन
सब मिट जातीं उच्छ्वासें ।।
घिरी घटाएँ देख मयूरों का ,
का उर हर्षित होता ।
नृत्य उनका सुंदरता का ,
अनुपम लड़ी पिरोता ।।
खेतों में हरियाली ,
नव दुल्हन -सी है सज जाती ।
उद्यानों के द्रुम निखरकर ,
धरते रूप जवानी ।।
पुष्प प्रफुल्लित हो शाखों पर ,
मनहर छवि दिखाते ।
भ्रमर वृंद रससिक्त होने को ,
गति वेग से आते ।।
नवयौवना भी उमंग पूरित हो ,
हैं नख-शिख सज जातीं ।
देख नजाकत ऋतु वैभव की ,
गीत मनोहर गातीं ।।
मसलन दृष्टि जहाँ तक जाती ,
हर्षानंद दिखाता ।
जग को पुलकित करने को ही ,
मास ये श्रावण आता ।।
-
- कमल सीवानी
रामगढ़
सीवान
बिहार
हार्दिक आभारी!