kavya shahar chod chale by sudhir srivastav

 शहर छोड़ चले

kavya shahar chod chale by sudhir srivastav



तुम्हारे प्यार का
सुरूर ऐसा था कि हम
तुम्हारे शहर आ गये,
तुमसे मिलने की 
ख्वाहिश तो बहुत थी मगर
दूर दूर ही रहे।
तुम्हें देखने भर की ख्वाहिशें लिए
यहां वहां, जहां तहां
पागलपन में भटकते रहे।
वर्षों बाद भी 
कभी तुम्हारा दीदार न हुआ,
या फिर शायद तुम्हारा ही
मेरे सामने आना का
कभी दिल ही नहीं हुआ
या फिर तुम्हें 
कभी न ये ख्याल आया
कि कुछ कदम ही सही
हम साथ साथ चलें,
आखिरकार थकहार कर
हम तुम्हारा शहर ही छोड़ चले।
■ सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा, उ.प्र.
    8115285921
©मौलिक, स्वरचित,अप्रकाशित
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