Ann ki barbadi rokne ka sabak by jitendra kabir
July 23, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
अन्न की बर्बादी रोकने का सबक
देखता हूं जब-जब मैं
अपने घर के बच्चों को
आवश्यकता से अधिक भोजन लेकर
फिर उसे जूठा छोड़ बर्बाद करते हुए,
तो बरबस याद आ जाता है
मुझे अपना बचपन
डांट पड़ जाती थी जब बुजुर्गों से
अगर थाली से अन्न का एक दाना भी
कभी जो बाहर गिरे,
आंखों की भूख करने के दण्डस्वरूप जब
अक्सर दिखाया जाता था भविष्य में
भूखों मरने के श्राप का भय,
अन्न की सही कद्र करने का सबक
भले ही सीखा था हमनें
मन ही मन अपने बुजुर्गों की
कृपणता को कोसते हुए,
लेकिन बड़े हुए तो अहसास हुआ
कि कितने सही थे वो अपनी जगह
देखा जब दुनिया में लोगों को
रोटी के एक-एक टुकड़े के लिए तरसते हुए,
लड़ते-झगड़ते हुए,
आज देखता हूं मैं जब किसी को
अपना भोजन बर्बाद करते हुए
तो दुःख होता है
कि अपनी तथाकथित साधन-संपन्नता
के दंभ में
या फिर ज्यादा लाड़-प्यार के चक्कर में
हममें से बहुत लोग
सिखाते नहीं अपने बच्चों को जिंदगी का
एक बड़ा महत्त्वपूर्ण सबक यह।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com
If you can't commemt, try using Chrome instead.