peedhiyon ka antar by Jitendra Kabir
पीढ़ियों का अंतर
बच्चे!
वर्तमान में जीना
चाहते हैं
अपने बाल मन के कारण,
इसलिए मौका मिलता
है जब भी
निकल लेते हैं
अपने बाल-सखाओं के साथ
मस्ती मारने के लिए,
मां-बाप!
भविष्य की सोच
रखते हैं
अपने सयानेपन के कारण,
इसलिए हर समय डांटते हैं
बच्चों को
पढ़ाई न करने के लिए।
अपने बच्चों के भाग्य-विधाता
बनने की धुन में
भूल जाते हैं वो
कि उन्होंने भी
बचपन में अपने मां-बाप की
हर बात नहीं मानी,
मां-बाप जो और जैसा
बनाना चाहते थे उन्हें,
बिल्कुल वैसे ही उनमें से
बहुत लोग न बन पाए,
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314