Pyar tumse bahut chahti thi by antima singh

July 31, 2021 ・0 comments

 शीर्षक- 
प्यार तुमसे बहुत चाहती थी।

Pyar tumse bahut chahti thi by antima singh


प्यार तुमसे तुम्हारा बहुत चाहती थी,

बोलो ना..ये क्या मैं गलत चाहती थी........?


माना, खूबसूरत नहीं अप्सरा की सी मैं,

पर बिछायी थी दिल ये धरा की सी मैं,

ना कनक धन और ना मैंने चाहा रजत,

अपने ज़ज्बातों की बस इज्जत चाहती थी।

बोलो ना... ये क्या मैं गलत चाहती थी........?


मैंने हरदम पुकारा तु्म्हें प्यार से,

साथ देते तो लड़ जाती संसार से,

तुम तो रिश्ते का मतलब न जाने कभी,

अपने रिश्ते को देना मैं संबल चाहती थी,

बोलो ना... कि क्या मैं गलत चाहती थी.......?


बहुत खूब चलता ये रिश्ता हमारा,

सजन मेरे ग़र तुम भी देते सहारा,

दो दिन प्रीत का स्वांग करके क्युं छोड़ा,

मैं तुमसे जो थोड़ी कुव्वत चाहती थी,

बोलो ना....ये कैसे गलत चाहती थी........?


तुमने अपनी प्रिया को है माना बहुत,

मेरा दिल यूं दगा कर दुखाया बहुत,

स्नेह धागे से बंध करके मैं तो सदा,

पूरे करने वो सातो बचन चाहती थी।

बोलो ना....ये क्या मैं गलत चाहती थी...........?


           अंतिमा सिंह,"गोरखपुरी   (स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित रचना)

25/07/2021

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