Talash kavita by Kalpana kumari Patna

 स्वरचित कविता

Talash kavita by Kalpana kumari Patna

तलाश

-------- जाने कैसी डोर बंधी है, चाहूं भी तो छोड़ सकूं ना, मेरे हृदय के तार हो तुम, जाने कैसी तलाश हो तुम। तन में ढूँढा मन में ढूँढा, इस मायावी नगरी मे ढूँढा, सबके अपार हो तुम, जाने कैसी तलाश हो तुम। निज में ढूँढा, पर में ढूँढा, प्रकृति के कण कण में ढूँढा, सबके आधार हो तुम, जाने कैसी तलाश हो तुम। जिद हो या हो पूर्ण समर्पण, या हो मेरे जीवन के दर्पण, अनंत प्रेम का द्वार हो तुम, जाने कैसी तलाश हो तुम। आज में हो, कल में नहीं, बीते पल में भी तो नहीं, ऐसा प्रतिपल आभास हो तुम, जाने कैसी तलाश हो तुम। दृष्टि भी तुम, सृष्टि भी तुम, दृष्टि बिन सृष्टि कहाँ है, ऐसी दृष्टि मिल जाए तो, अपलक निहार हो तुम, जाने कैसी तलाश हो तुम। बढ़ रही है प्यास निरंतर, तुझे पाने की चाह निरंतर, चाहत के गहरे तल पर, एक सुखद एहसास हो तुम, जाने कैसी तलाश हो तुम। प्राणों में स्पंदन तेरा, हर धड़कन पर दस्तक तेरा, स्वास-स्वास की गहरी पुकार हो तुम, जाने कैसी तलाश हो तुम। गुनगुनी धूप का एहसास हो तुम, शीतल पवन का साज भी तुम, मानो हर पल  पास हो तुम, जाने कैसी तलाश हो तुम। हर जीवन का सार हो तुम, अंत का पूर्ण विराम हो तुम, जीवन के हर प्रश्नों का, एकमात्र जवाब हो तुम, जाने कैसी तलाश हो तुम...। --- कल्पना कुमारी
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