Laghukatha maa by jayshree birmi ahamadabad

August 04, 2021 ・0 comments



लघुकथा
मां

Laghukatha maa by jayshree birmi ahamadabad




बहुत ही पुरानी बात हैं,जब गावों में बिजली नहीं होती थी,मकान कच्चे होते थे,रसोई में चूल्हे पर खाना बनता था और सुख सुविधा के नाम पर एक चार पाई बिछी रहती थी।साल में एक ही बार दर्जी घर में आके पूरे साल के कपड़े सील जाता था।
ऐसी सादगी की जिंदगी हुआ करती थी।उन्ही दिनों की बात हैं,एक गांव में मास्टरजी अपने छ: बच्चे और बीमार पत्नी के साथ रहते थे। एक कमरा ,रसोई घर और बड़ा सा औंसारा ये था उनका कच्चा सा घर।पढ़ाने जाने से पहले खाना बना के जाते थे और घर के बाकि के काम वह बच्चों की मदद से कर लिया करते थे।वैसे बहुत मुश्किल था ऐसी गृहस्थी निभाना पर निभ रही थी जैसे तैसे।
वैद्यजी हफ्ते में इक दिन घर आके उनकी पत्नी को दवाई दे जाते थे।उस दिन भी वैद्यीजी आए तो मास्टरजी ने थोडी उदासी से पूछ ही लिया,कब तक ऐसा चलेगा? कब ठीक होगी उनकी पत्नी? वैद्यजी सिर हिला अनिश्चितता बयान कर गए।उन से बीमार पत्नी का क्षीण शरीर चारपाई पे पड़ा देखा नहीं जाता था। न तो उनमें उठ ने की शक्ति थी न ही कुछ काम करने की।
मास्टरजी रात को खाना खा ओंसारे में खटियां पर सो जाते थे और बच्चे कमरे में नीचे बिस्तर बिछा सो जाते थे,ये रोज ही का क्रम था।
एक दिन बच्चे बिस्तर पे लेट गए थे ,उन्हों ने लालटेन की लौ कम की और खुद बाहर औंसारे में आ अपनी खटियां पे सो गए। आधी रात को कहीं से एक साप कमरे में आया तो मास्टरनी जी बड़ी मुश्किल से उठ कोने में पड़ी लाठी उठा साप को बड़े ही जनून से पिट पिट के मार दिया और वहीं बेसुध हो गिर पड़ी,बच्चे भी उठ सहमे से कोने में खड़े हो गए ।मास्टरजी ने आवाजे सुनी तो दौड़ के कमरे में आए और देख हैरान से रह गए।उनकी पत्नी जो उठ ने में कई सालों से असमर्थ थी वह साप को मार बेसुध पड़ी थी।
मास्टरजी ने बड़े बेटे को भेज वैद्यजी को बुलावा भेजा।थोड़ी देर में वैद्यजी आए तब तक मास्टरजी ने बच्चों के साथ मिल मास्टरनीजी को चारपाई पर लिटा दिया था। वैद्यजी ने आकर नाड़ी देख बताया कि कमजोरी और डर की वजह से होश खो बैठी थी चिंता की कोई बात न थी।किंतु वैद्यजी भी हैरान थे कि वह उठ कैसे पाई। उनके हिसाब से उसमे इतनी ताकत थी ही नहीं,वह ताकत कैसे आई समझ नही पा रहे थे।
वैसे बच्चो से ज्यादा मां के लिए दुनियां में कुछ भी यानि की कुछ भी नहीं यह साबित हो गया था।मास्टरनी जी जो कई सालों से बिस्तर पर कंकाल सी पड़ी थी बच्चों की और आते साप को देख कैसे उठ पड़ी उन्हें खुद को पता नहीं चला था। मां तो मां ही होती हैं ।


जयश्री बिर्मी
निवृत्त शिक्षिका
अहमदाबाद

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