Man mastishk kavita by Anita Sharma
मन-मस्तिष्क
मन-मस्तिष्क में उमड़ते-घुमड़ते,
विचारों की शृंखला।
कितनी उलझी-सुलझी गुत्थियां ,
उठते-गिरते विचार ।
***
कितनी लहरें सुख-दुःख की समांई ,
मस्तिष्क की गहराई में।
कितनी यादें नई-पुरानी हलचल करती,
मन-मस्तिष्क में उमड़ घुमड़।
**
कितना शोर मचाते उठते-गिरते भाव,
मन विभ्रमित होता भावों से।
कितने भावो की निष्क्रियता गिरती,
नाजुक भावों की उत्पत्ति से।
**
मनोभावों के गिरते-उठते कोलाहल ,
का झंझावात समेटे मन।
बहुत मुखरित शोर मचाते तनावग्रसित,
उहा-पोह के शंकित भाव।
**
एकाग्रता के मनोभावों का शांत भाव ,
तन्मयता भर देता मन-मस्तिष्क में।
नितान्त स्थिर मन चैतन्यता से ओत-प्रोत,
स्थिरता विचारों की भर देता ।
**---अनिता शर्मा झाँसी
**---मौलिक रचना
-----