Jooton ki khoj by Jayshree birmi

 जूतों की खोज

Jooton ki khoj by Jayshree birmi


आज हम जूते पहनते हैं पैरों की सुरक्षा के साथ साथ अच्छे दिखने और फैशन के चलन में हो वैसे रंग बी रंगी। सब के लिए अलग अलग डिजाइन और फैशन के जूते और अब तो आयती भी मिलने लगे हैं,जो एक स्टेटस का प्रतीक भी बन गएं हैं।किंतु उसकी उत्पति की कहानी बहुत कुछ सीखा जाती हैं।

   एक राजा था ,बहुत अच्छा ,अपनी प्रजा के लिए बहुत काम करता था,बहुत ही प्रजा वत्सल और नेक।वह एक ही बात से व्यथित रहता था कि जब वह बाहर जाता था तो उसके पांव में मिट्टी लग जाती थी,वह मिट्टी रथ के अंदर भी लग जाती थी और रथ के साथ साथ वह उसके भवन और भवन से शयन कक्ष तक पहुंच जाती थी ,और उसे बहुत ही घृणा थी मिट्टी से। याने अपने सभी प्रभारियों को विमर्श के लिए बुला भेजा और दरबार में बैठ उसी बात पर चर्चा शुरू की,किसी ने सुझाव दिया कि कुछ लोगो के हाथ में पंखे दे कर उन्हे चलाने के लिए बोल देते हैं तो मिट्टी सारी उड़ जायेगी।सब ने सुना तो विरोध हुआ की ऐसे तो मिट्टी बवंडर बन उड़ेगी यह तो और गलत होगा।असमंजस में सभा खत्म हुई और सब चले गए।

एक दिन अकेले बैठा इसी प्रश्न पर सोच रहा था की क्या किया जाए ,फिर उठ के चलने लगा तो कालीन में पैर फैंस गया और गिरते गिरते बचा,लेकिन कालीन देख एक ख्याल आया कि क्यों न पूरे राज्य को कालीनों से ढक दिया जाएं ताकि मिट्टी उड़ा ही नहीं।और क्या था,राजा–बजा और बंदर अपनी मर्जी से बजा लो, बाजे में जैसे फुक मरोगे वैसे ही बजेगा,राजा को खयाल आयेगा या कोई खयाल देगा वैसे ही करेगा,और बंदर तो है नकलची। बस अब खयाल आया राजाजी को कि मिट्टी को उनके संपर्क से कैसे हटाएं,दरबार में सभी मंत्रियों को आने की सख्त हिदायत भेजी गई।सब आए भी और चर्चा शुरू हुई।

       आपातकाल सी परिस्थिति पैदा हो गई ,सभी मंत्रीगण आ पहुंचे सभा में और चर्चा शुरू हा गई ,सब के पास बहुत से विचार थे किंतु कुछ अवास्तविक से थे उनके आयोजन।राजा जो बहुत कम नाराज या गुस्से होता था ,एक दम ही गुस्से हो गया और हुकम कर दिया कि पूरे राज्य में कालीन बिछा दिया जाएं।अब परिवहन मंत्री को लखित आदेश भी मिल गया और कार्यान्वित होना शुरू हो गया।कोई राज्य के रास्ते को नापने गए तो कोई उसके लिए कालीन बनाने वालों को ढूंढने लगे।रोज के कितने कालीन बनेंगे तो पूरे राज्य में उन्हें मंडित करने में कितना समय लगेगा।ये सोच सोच परिवहन मंत्री और उनके तहत आने वाले सभी ओहदेदारों और कर्मचारियों बहुत ही परेशानी हो गई थी।काम शुरू करे भी तो किस जगह से करें ये भी एक प्रश्न था।अब तो पूरे राज्य में चर्चा हो रही थी कि क्या क्या हो सकता हैं।

    ऐसे में एक सयाना नागरिक आया और राजा से मिलने की इजाजत मांगी।तो संत्रियों ने उन्हें राजा से मिलने की रजा नहीं दी,ऐसे दो तीन दिन वापस घर जाता रहा और फिर दूसरे दिन आके खड़ा हो जाता था संतरी के पास। हार कर संतरी ने डांट कर पूछा कि क्यों उसे मिलना था, राजा को ऐसे समय में, कि जब राजा इतने गहन प्रश्नों का हल ढूंढ़ने में व्यस्त थे,तब उसने बताया कि उसके पास इसी समस्या का हल हैं।संतरी दौड़ा दौड़ा गया और राजा को बताया कि बाहर एक व्यक्ति उनसे मिलने के लिए दसियों बार आ चुका हैं और उनसे मिले बिना जाने के लिए राजी नहीं हैं ।

       संत्री ने बताया कि अभी तक तो मिलने की अनुमति नहीं दे उसे टाल दिया पर वह था कि मानने को तैयार ही न था।आखिर एक सिपाही पूछा कि कारण बताए बताएं, तब बोला कि उसके पास राजाजी के पैरो को मिट्टी से बचाने का उपाय हैं,और वो दौड़ा दौड़ा गया और राजा को उस आदमी के आने का प्रयोजन बता ही दिया।बस उसे मिल गयी इजाजत, दरबार में हाजिर होने की।

 वह गया तो उसके हाथ में छोटी सी थैली थी,राजा को प्रणाम आदि के बाद उसने अपनी थैली में से दो छोटी छोटी चीजें जो कपड़े से बनी थी वह निकाली,और राजा के सामने पेश करदी, सब अचंभित से देख रहे थे,कि वो क्या करने वाला था,अगर कुछ उल्टा सीधा हुआ तो राजा के कोप का भाजित होना पड़ेगा।उसने बड़े विवेक से राजा के पावों के पास बैठ वो जो उसने जूते बनाए थे वो राजा के पैरो में पहना दिया और राजा को चलने के लिए बोला ,जब राजा चला तो उसके पांव मिट्टी से बचे रहे और राजा एकदम प्रसन्न हो गया और उसे बहुत बड़ा इनाम दिया।वह इनाम ले चला गया तो अपने दरबारियों को राजा ने खूब लताड़ा कि इतने बड़े ओहदों पर बैठे वे कुछ न कर पाए और एक अनपढ़ और सामान्य आदमी ने करिश्मा कर ही डाला।

 ये तो हुई कहानी किंतु असल जिंदगी में भी बहुत काम की बात बता गई हैं कि दुनियां को बदलने की बजाय खुद को बदलें किसी पे भी अपना बस नहीं होता हैं ,किसी को भी हम बदल सकतें नहीं हैं।अगर बदल सकते हैं तो खुद को,अपने आपको ही बदल सकते हैं।


जयश्री बिरमी

निवृत्त शिक्षिका 

अहमदाबाद

८ सप्तेम्बर

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