हथकड़ियाँ पहना दे....!!! -vijay lakshmi pandey
November 07, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
हथकड़ियाँ पहना दे....!!!
प्रतिबन्धित जब हरी कलाई ,
हथकड़ियाँ पहना दे...!!
कंगन की खन-खन में
चूड़ी की छन - छन में
तेरी उलझन ,मेरी धड़कन
ये तुझको खूब सुहाए
तेरी अनुमति लेकर
मदमस्त रागिनी गाए
इससे तो अच्छा होगा
तू हथ कड़ियाँ पहना दे ..!!
प्रतिबन्धित जब हरी कलाई
हथकड़ियाँ पहना दे..!!
पायल की छम-छम में ,
घुँघुरु की छन-छन में
धड़कन बसती तेरी
हसरत जगती मेरी
एहसान तेरा, मानूँ,
अफ़सोस ,मैं मैं न रही जानूँ..!!!
इससे तो अच्छा होगा,
तू बेड़ी एक बना दे ..!!!
प्रतिबन्धित जब हरी कलाई
हथकड़ियाँ पहना दे ..!!!
मलय पवन के झोंके सी
परियों के संग गाती
रंग-बिरंगी तितली बनकर
फूल-फूल इतराती
बड़े सुहानें सपनें देखे
सपनों से मुझे जगा दे
इससे तो अच्छा होगा
जाल फेंककर धागों में उलझा दे..!!!
प्रतिबन्धित जब हरी कलाई
हथकड़ियाँ पहना दे..!!!
चंदा जगे गगन में
सूरज का अपना मेला
चंदा तके "विजय" को
सूरज जले अकेला
तारा गण अपनीं मस्ती में
चमके अँधियारी बस्ती में
अँधियारी बस्ती में कोई
फिर से दीप जला दे
इससे तो अच्छा होगा
दिल में जरा जगह दे..!!!
प्रतिबन्धित जब हरी कलाई
हथ कड़ियाँ पहना दे..!!!✍️
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