Peeda khone ki teri by Dr. H.K. Mishra

 पीड़ा खोने की तेरी

Peeda khone ki teri by Dr. H.K. Mishra

तोड़ चली हर रस्मों को तेरा पथ ज्योतिर्मय है,

मेरा क्या मैं रहा अकेला, कौन सुनेगा मेरा अब,

टटोल रहा मैं अपने पथ को कितना चलना मेरा,

प्रेम हमारा खोने का क्या  बहुत  मिला है तेरा  ।।


सुख दुख में हम साथ रहे हैं आगे भी तू रहना,

याद तुम्हारी यही बहुत है कश्ती लिए किनारा,

जीवन तो है उसकी  लीला देगा  वही सहारा ,

चल यादों के साथ हमारे थक कर मैं भी आया।।


खोने की पीड़ा किसे न होती मुझे मिला है जितना,

संतोष बहुत है अतीत तुम्हारा लेकर घर में आया ,

दूर बहुत हैं तुमसे लेकिन मिलने की अभिलाषा ,

आशा पर  ही टिकी हुई  है अपनी दुनिया सारी ।।


मधुर गीत हैं जितने मेरे दर्द उसी में हैं तेरे ,

छलक पड़े हैं हर गीतों में विरह वेदना मेरी,

मंजिल मेरी दूर पड़ी है मिलकर कुछ तो गाएं,

कट जाएंगे जीवन के छन दर्द  न होगा कम  ।।


देख निराली दुनिया अपनी बहुत विवश हूं आज,

न छेड़ो स्वर के सरगम को, सप्तक सारे सोय है,

ध्वनि मेरी इसी में है सारे गीत नगमें भी इसी में हैं,

छेड़ोगे सुनाएंगे ये सारे गीत जीवन के जो प्यारे हैं ।।


तत्वज्ञान है गीता का, अंत नहीं है इच्छा की,

इच्छाएं ही कारण  हैं  मानव मन बेचैनी का,

भोगवृत्ति से छुटकारे का योग वृत्ति साधन है,

तत्वज्ञान अभ्यास से अज्ञान हमारा टूटेगा ।।


चिंतन मय जीवन में संयम अभ्यास जरूरी ,

संयम मय जीवन में विवेक हमारा साथी हो,

ज्ञान और वैराग्य पर चिंतन मेरा अपना हो,

संयम  खो जाने पर समस्या अपनी बढ़ती है।।


गीता दर्शन अविनाशी का संदेश सदा मिला है,

निस्वार्थ कर्म पर चलने वाला ही सच्चा सन्यासी,

जीवन के हर तत्व मिले हैं गीता  दर्शन के अंदर ,

अन्यायी से  लड़ने का हमें समर्थन मिलता है  ।।


मौलिक रचना
                     डॉ हरे कृष्ण मिश्र
                      बोकारो स्टील सिटी
                        झारखंड।

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