हमेशा के लिए कुछ भी नहीं-जितेन्द्र 'कबीर'
مارس 26, 2022 ・0 comments ・Topic: Jitendra_Kabir poem
हमेशा के लिए कुछ भी नहीं
न यह जीत आखिरी हैऔर न यह हार आखिरी है,
रोजाना का संघर्ष है जीवन
चलेगा यह ऐसे ही
जब तक हमारी सांस आखिरी है।
जीत से अहंकार न हो
और हार से न टूटे हौसला,
सफलता का यह विचार
आखिरी है,
उम्मीद का सूरज उगा
हर नये दिन के साथ,
हार कर मत बैठ
कि अंधेरे की यह रात आखिरी है।
छूट जाएगा वो सब कुछ यहीं
जीत से जो हासिल किया,
वो सब कुछ भी तो पाया था यहीं
हार कर जो गंवा दिया,
हमेशा के लिए कुछ भी नहीं
मन की संतुष्टि के लिए
यह आधार आखिरी है,
परिस्थितियों को अपने अनुकूल बना लें
या फिर उनके हिसाब से
खुद को लें ढाल,
सुखी जीवन के लिए यह सिद्धांत
आखिरी है।
जितेन्द्र 'कबीर'
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