हाशिये पर इतिहास- शैलेंद्र श्रीवास्तव
مارس 26, 2022 ・0 comments ・Topic: poem shailendra_Srivastava
हाशिये पर इतिहास
ब्रह्म राक्षसबहुत छल प्रपंची होता है
वह कितनो का अंतरंग होता है
वह न किसी धर्म न पंथ
न किसी वाद का होता है
दर असल
वह अपने से भी अजनबी होता है
वह किसी सरोवर या पेड़ के खोह
में ही नहीं
किसी के पेट में भी छिप सकता है
यों आज यह मुद्दा है भी नहीं
कि ब्रह्मराक्षस होंते हैं या नहीं
सींग वाले होते हैं
या बडे पेट वाले होते हैं
दर असल वह अक्सर
अमूर्त ही रहता है
आप उसका ठिकाना जानना चाहेंगे
तो कोई नहीं बता पायेगा
ठीक ठाक
लुकमान अली भी नहीं
यदि उनसे पूछेंगे भी तो
वह हंसेगा
फिर संसद मार्ग पर बढता
किसी पेशाब घर में खड़ा
पेशाब करता
वह विचार करेगा
दर असल
वह आदमी ही सनकी है
जिसने लुकमान अली से
यह सवाल पूछा है
लुकमान अली जानता है
ब्रह्मराक्षस महज
आदमी के मस्तिष्क की उपज है
वक्त बे वक्त जो कभी
कश्मीर में
कभी मुम्बई
कभी लाहौर
कभी माले गांव
कभी ढाका
कभी न्यूयार्क
कभी पेरिस
कभी सीरिया
इराक में फूटता है
ताजुब्ब नही
कभी पूरे एशिया में फैल जाए
औऱ हम न रोक पाये
इस लिए आज जरूरी है
उस ब्रह्मराक्षस पहचाने
नही तो
सभ्यता की लडाई में हम
इतिहास के हाशिये पर
हाथ मलते ही रह जाये एक दिन ।
शैलें द्र श्रीवास्तव /लखनऊ
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