कोई रंग ऐसा बरस जाए- जितेन्द्र 'कबीर'
مارس 26, 2022 ・0 comments ・Topic: Jitendra_Kabir poem
कोई रंग ऐसा बरस जाए
इस बार होली में कोई रंग आसमां सेऐसा बरस जाए,
कि बस इंसानियत के रंग में रंगी
सारी दुनिया नजर आए।
चमड़ी का रंग दिखे सबका एक ही
उसमें नस्ल नजर ना आए,
वैर-विरोध का कारण जो बनें
ऐसी फसल नजर ना आए।
पाखंड के ओढ़े हैं नकाब जिस-जिसने
सबके सब उतर जाएं,
बस एक दिन के लिए ही सही लेकिन
सबके असली चेहरे नजर आएं।
कड़वाहट घोलने वाली कोई भी बात
कान के अंदर ना जाए,
गुझिया की मीठी-मीठी सी महक
हर एक शब्द में घुलती जाए।
दिलो-दिमाग में पनपने वाले बुरे विचार
होलिका के साथ भस्म हो जाएं,
शांति और भाईचारे का दुनिया में
इस बार रंगीन एक जश्न हो जाए।
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