दुखे पेट पीटे सिर
दुखे पेट पीटे सिर
जम्मू कश्मीर में 370 हटाने से दूसरे कई मुद्दों पर चुप रहने वाले पेट्रोल के उत्पादन वाले देशों को अभी क्या हुआ हैं जो अभी एक छोटी सी बात पर हल्लागुल्ला मचाने लगा है? नूपुर शर्मा ने अकेली ने ही कोई ऐसा बयान नहीं दिया,दूसरे पक्षों ने भी सनातनी देवी देवताओं के विरोध में बहुत से बेहूदा बयान दे चुके हैं तब कोई भी कुछ नहीं बोल रहा था, ये भी एक दलील होने के बावजूद ये सब विरोध क्यों?अगर हम कहें की नूपुर के मामले में सरकर ने विदेशी दबाव में आकर उन्हें बीजेपी से बेदखल करने की बात बहुत गहरी हैं। आंतरराष्ट्रीय मामलों में जो आजकल अपने देश का जो स्थान हैं वह अपनी सरकार की दुरंदेशी विदेश नीति का ही असर हैं।अमेरिका ने हमारे अल्पसंख्यक समुदायों के मामले को उठाया तो जवाब दिया गया कि तुम अपने देश का हाल देखो तुम्हारे देश का रेसिजम देखो, गन कल्चर देखो आदि। वैसे ही रूस और यूक्रेन के युद्ध में अमेरिका और यूरोपीय देशों का साथ दे रूस का विरोध नहीं करने की वजह से वे नाराज थे किंतु पहले जैसे दबाव नहीं दे पाएं तो विभिन्न कारणों का सहारा ले घेरेबंदी करनी चाही लेकिन सभी के हमारे विदेश मंत्री जवाब देते आ रहे हैं। जब पेट्रोल खरीदी पर एतराज उठाया गया तो अपने विदेश मंत्री ने जवाब दिया था कि यूरोपीय देश जो आधे दिन में उपयोग में लेता हैं उतना तो हम महीने भर में उपयोग में लेते हैं पहले उनके पर प्रतिबंध लगाओ। रूस से सस्तें दामों से पेट्रोल लेने की वजह से अपनी अर्थव्यवस्था इन कठिन समय में भी सही रह सकी हैं ये रूस के साथ अपने रिश्तों का मजबूत होना ही हैं।इस क्राइसिस में भारत के साथ देने से रूस की आंतरराष्ट्रीय स्थिति पर सीधा असर पड़ता हैं।
अपने विदेश मंत्री के दो टूक जवाब अमेरिका और यूरोपीय देशों को आज तक कभी किसी ने नहीं दिया हैं।आज जो भारत की परिस्थिति हैं उसीकी वजह से आज कोई भी आंखें नहीं दिखा पा रहा,खुल कर कोई बोल नहीं पा रहा बहुत नाराजगी होने के बावजूद भी।
कुछ यूं देखें तो ,पहले फार्मास्यूटिकल कंपनियों की नाराजगी,आज अपना देश इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन रहा हैं जिसका ज्वलंत उदाहरण हैं कॉविड 19 की वैक्सीन हैं। उस वक्त तो अपने देश वालों ने ही सवाल उठाए थे।वैसे ही पेट्रोल के मामले में भी हैं।इथिलीन का प्रयोग, ई. वि. का विस्तार आदि की वजह से पेट्रोल डिपेंडेंसी कम होने लगी हैं। यहां भी आत्मनिर्भरता की और प्रयाण शुरू हो गया हैं।
मुख्य मुद्दा गिनें तो अपने देश के प्रतिनिधि मंडल का अफगानिस्तान जा के मंत्रणा करना और तालिबान का ’अगर हमारा दूतावास खोलते हैं तो उसकी सुरक्षा’ का वादा किया गया,ये सब ही की बर्दाश्त के बाहर की बात थी। दोहा में अमेरिका भी तालिबानियों से बात करने की तैयारी कर रहा था,दूसरे देश भी उसी दिशा में जाने वाले थे लेकिन भारत का प्रतिनिधिमंडल गया भी और सफल वर्तलाप भी रहा ये सभी देशों के पेट दर्द का कारण था।दो जून को हमारा प्रतिनिधि अफगानिस्तान से सफल बातचीत हुई और की तीन जून को अपने देश रिलिजियस फ्रीडम के बारे में रिपोर्ट अमेरिका जारी करता हैं और चार जून को कतर हमारे राजदूत को बुला कर नूपुर के मुद्दे पर बात की,जब नूपुर का बयान तो 27 जून से सोसियल माडिया में चल रहा था तो 4 जून को उसपर एतराज क्यों?क्या सब ने 4th को जाना था ? या फिर कोई ओर वजह थी ?एक ओर बात हैं उनके खाड़ी देशों में भी होड़ लगी हैं इस्लामिक देशों के सुप्रीम बनने की,जो आज साउदी अरब हैं।वे शायद अपना एका दिखाने की कोशिश कर रहें हो और सभी साथ में विरोध उठा रहे हो।एक अकेला कतर ही विरोध उठाएगा तो वही बाजी मार जाएगा इसलिए सभी देश आगे आ गए थे।
अगर कतार अमेरिकी दबाव पर आलोचना करता हैं तो दूसरे देश इसी वजह से सामने आएं हैं।
अब कतार ने जो अपनी नाराजगी नूपुर के बयानों पर बयान दे हमारे उत्पादों पर प्रतिबंध लगाना उनके पहले के रवैयों से कुछ हट के हैं। इसका धर्म से कोई संबंध नहीं हैं ये शुद्ध राजनैतिक ,आर्थिक और रणनीतिक दृष्टि से लिया गया फैसला हैं।ये सभी देशों के पास हमे देने केलिए सिर्फ पेट्रोल –oil ही हैं लेकिन भारत के पास उन्हें देने के लिए बहुत कुछ हैं।खास करके गेंहू जो रूस यूक्रेन के युद्ध की वजह से उनका निकास करना शक्य नहीं हैं जिससे इस मामले में भारत ही है जो दुनियां को गेहूं दे सकता हैं जिसे भारत ने एक्सपोर्ट करने से मना कर दिया था।वह ही मुख्य कारण हैं इन सभी वाकयों का।जब IMF ने पाकिस्तान को 8 बिलियन $ बेलआउट पैकेज की बात हो रही थी जिसका सीधा असर हमारे देश की शांति पर पड़ने वाला था उस धन राशि का प्रयोग करके कश्मीर में अशांति पैदा की जाती हमेशा की तरह।अब हमारे देश ने उसका विरोध नहीं किया लेकिन गेहूं की निकास रोक दी कि इस साल हमारे देश में गर्मी ज्यादा होने की वजह से गेहूं की पैदाश कम हो गई हैं।और परिणाम स्वरूप IMF ने बैल आऊट पैकेज के लिए मना कर दिया तो खाड़ी देश जो पाकिस्तान को लोन दे मदद करने वाले थे उन्होंने भी मना कर दिया क्योंकि उनकी दी हुई लोन वापस कैसे देगा पाकिस्तान।
अब रहा नूपुर का मामला ,ये सिर्फ आई वॉश हैं जो खाड़ी देशों की मित्रता जो पिछले आठ सालों में भारत ने बढ़ाई हैं उसे बरकरार रखने के लिए ही उठाया गया कदम हैं।न तो नूपुर को सपोर्ट कर उनसे दोस्ती तोड़ सकते थे न ही नूपुर को सजा दे कर उसे दंडित कर देश का विश्वास गवां सकते थे ।मैने देखा हैं मोदीजी को गुजरात के मुख्य मंत्री से प्रधान मंत्री बनने का सफर,उनकी नीति चूहे जैसी हैं जो काटता तो हैं लेकिन फूंक फूंक कर ताकि पता ही नहीं लगे उसे काटा जा रहा हैं।अगर देश हित से ज्यादा मोदी को हटाने में रस रखने वालें लोग चाहें कुछ भी सोचें लेकिन देश का नुकसान कर मोदी को हटाने की सोच रखने वाले लोग देश द्रोह कर देश को नुकसान पहुंचाने से ज्यादा अपनी नीतियों से देश को संगठित कर रख कर संरक्षित रखने की सोचें।
जयश्री बिरमी
अहमदाबाद
( संकलित)