पक्षाघात के दो अविस्मरणीय वर्ष

 पक्षाघात के दो अविस्मरणीय वर्ष

सुधीर श्रीवास्तव
सुधीर श्रीवास्तव

आपबीती

पक्षाघात बना वरदान

      ईश्वर और प्रकृति का हम सबके जीवन में अगला कदम क्या होगा,यह कह पाना असंभव है। कहने/ सुनने में अजीब लग रहा है किंतु बहुत बार जीवन में ऐसा कुछ हो ही जाता है जिसकी कल्पना तक नहीं होती है।

     25 मई' 2020 की रात मुझे पक्षाघात की मार क्या पड़ी, हर तरफ निराशा और अँधेरा ही अँधेरा दिखने लगा। फिलहाल इलाज के प्रारंभिक चरण के बाद अस्पताल से घर वापसी के बाद उहापोह के बादलों के बीच उम्मीद की एक किरण प्रस्फुटित हुई और पिछले 20-22 वर्षों से कोमा में जा चुका मेरा लेखन फिर से अँगड़ाइयाँ लेने लगा और फिर समय के साथ एक बार फिर मेरी साहित्यिक यात्रा ने अपने कदम आगे बढ़ा दिये। फलस्वरूप मुझे उम्मीद से बेहतर परिणाम ही नहीं मान, सम्मान ,स्थान, पहचान,नाम भी राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिलते जा रहे हैं और यह सब कहीं न कहीं भगवान की लीला ही है कि पक्षाघात ने मुझे बहुत सारे न भूल पाने वाले घाव जरूर दिये है, सामान्य जीवन पटरी से उतर गया, आय का स्रोत समाप्त हो गया, मगर कुछ अलग करने, दिखने की जिजीविषा ने मेरी साहित्यिक चेतना/सृजन को पुनर्जन्म देकर मेरी पीड़ा, चिंता और दुश्वारियों के बीच मुझे बचाने का भी काम किया, शायद मेरे जीवन को भी।

    संक्षेप में नकारात्मक भावों को छोड़िए तो इस पक्षाघात ने मुझे साहित्यिक नव जीवन देकर न केवल प्रतिष्ठित करने का नया वातावरण तैयार करने का काम किया, जिसकी दूर दूर तक उम्मीद ही नहीं थी,क्योंकि मैं खुद भी इस ओर से विमुख था ,मगर कहीं न कहीं मेरे अंदर का हौंसला जरूर था , विश्वास भी था, पर सूत्र नहीं मिल रहा था या सूत्र हाथ से पूरी तरह फिसल चुका था।

      यह ईश्वर की लीला ही है कि अंधकार और पीड़ा रुपी पक्षाघात मेरे लिए वरदान जैसा साबित हुआ।जिसका परिणाम आज आप सभी को विशेष कर साहित्य से देश ही नहीं विदेश के भी जुड़े लोगों को पता चल ही रहा है। यही नहीं नये आत्मिक/भावनात्मक रिश्तों की बढ़ती संख्या और सैकडों रचनाकारों को प्रेरित करने, मार्गदर्शन देकर सफलता पूर्वक आगे बढ़ाने में जिस सुकून का एहसास और सतत लगे रहने का बढ़ता हौसला लाखों करोड़ों की कीमत पर भारी है। साथ ही मेरे आत्मबल को सतत मजबूत करने का माध्यम भी।

     विशेष यह भी है कि अन्याय बुजुर्गों, वरिष्ठों, परिवार, इष्ट मित्रों, शुभचिंतकों से मिलने वाला हौंसला, आशीर्वाद मेरे लिए किसी भारत रत्न से भी अधिक महत्वपूर्ण है। साथ ही आभासी दुनिया और फिर कुछेक से वास्तविक दुनिया से जुड़े साहित्यिक, सामाजिक क्षेत्रों से जुड़े उन सभी बड़े/ छोटे भाई बहनों का विशेष स्नेह , अपनापन, विश्वास, जिद , बड़े होने का बड़प्पन, छोटे होने की जिद और समय समय पर स्नेह भरे आदेशों, निर्देशों ने भी मुझे मजबूत बनाने में की दिशा प्रशस्त करता आ रहा है।

          आश्चर्यजनक यह भी किसी भी रुप में जान पहचान, रिश्ता, परिचय न होने के बावजूद साहित्यिक गतिविधियों के कारण कई असाहित्यिक श्रेष्ठ जनों का प्यार, दुलार, आशीर्वाद ही नहीं मिल रहा है, बल्कि कुछेक तो अभिभावक सरीखी भूमिका भी हर पल, हर दिन, हर समय निभाते हुए मेरी जीवन यात्रा को सरल और संबल युक्त बना रहे हैं। मुझे ऐसा लगता है कि ऐसे अन्जाने रिश्तों से जुड़े लोग ही मेरे जीवन की सतत यात्रा के सूत्रधार बन गये हैं। ऐसे अनगिनत लोगों का स्नेह/ आशीर्वाद ही संभवतः मेरे जीवन यात्रा की सारथी बन गई है।

      ऐसे नामों की न केवल लंबी श्रृंखला है, जिसे लिखने लगूं तो पन्ने भरते चले जायेंगे।इस श्रृंखला में कई नाम अन्य देशों से भी हैं।

    अब इसे आप क्या कहेंगे? यह आप खुद विचार कीजिये, परंतु यह सच्चाई है कि संकट में भी अवसर मिल ही जाते हैं या यूं कहें कि संकट भी अवसर प्रदान करने के लिए ही आता है। जरूरत है तो बस उस अवसर को पहचानने और आगे बढ़ने का हौसला और इच्छा शक्ति को मजबूत रखने की होती है। न कि ईश्वर और प्रकृति को कोसने की। वैसे भी जिस पर हमारा वश नहीं है, उसे समय पर छोड़ना ही बेहतर है। 


● सुधीर श्रीवास्तव

      गोण्डा, उ.प्र.

   8115285921

©मौलिक, स्वरचित,

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