खुद गरीब पर बच्चों को अमीर बनाते हैं पिता

August 28, 2022 ・0 comments

कविता: खुद गरीब पर बच्चों को अमीर बनाते हैं पिता

खुद गरीब पर बच्चों को अमीर बनाते हैं पिता
खुद गरीब पर बच्चों को अमीर बनाते हैं पिता 
कभी कंधे पर बिठाकर मेला दिखाते हैं पिता 
कभी घोड़ा बनकर घुमाते हैं पिता 
ऐसे सभी लोकों के महान देवता है पिता 

संकट में पतवार बन खड़े होते हैं पिता 
परिवार की हिम्मत विश्वास है पिता 
उम्मीद की आस पहचान है पिता
जग में अपने नाम से पहचान दिलाते हैं पिता

कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान हैं पिता 
मां अगर पैरों पर चलना सिखाती है 
तो पैरों पर खड़ा होना सिखाते हैं पिता 
कभी धरती तो कभी आसमान है पिता 

परिवार की इच्छाओं को पूरा करते हैं पिता 
हर किसी का ध्यान रखते हैं पिता  
धरा पर ईश्वर अल्लाह का नाम है पिता 
जग में अपने नाम से पहचान दिलाते हैं पिता

लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार कानूनी लेखक चिंतक कवि एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

About author

Kishan sanmukh

-संकलनकर्ता लेखक - कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

Post a Comment

boltizindagi@gmail.com

If you can't commemt, try using Chrome instead.