अदृश्य प्रलय

अदृश्य प्रलय

अदृश्य  प्रलय
चल रहा एक अदृश्य प्रलय
जो न जग को दृष्टिमान होता,
सब सजग मधु रागिनी में
सुप्त होता लुप्त होता।
तड़ित ने भी ठान लिया
अब न कोई पात होगा,
जब पुरुष का प्रकृति संग
फिर नया मधुमास होगा।
वात का भी यही निर्णय
न चलूँगा साथ मैं अब,
झूठी है बयार मलय की
ध्यान व आभान है क्या।
अंतरिक्ष की शांति के
मुदित मन की कांति के,
बीज का अंकुरण अवरुद्ध है
कदाचित संजीवनी क्षुब्ध है।

About author

मोहित त्रिपाठी
संक्षिप्त परिचय: कवि, लेखक, शिक्षक एवं समाजसेवी इंजी. मोहित त्रिपाठी। 27 फरवरी 1995 को वाराणसी में जन्म। बी.टेक एवं एम. टेक. की उपाधि प्राप्त की। मोहित त्रिपाठी वाराणसी में एक शिक्षण एवं समाज सेवी संस्था विज़डम इंस्टिट्यूट ऑफ़ एक्सीलेंस के संस्थापक और निदेशक हैं मोहित अध्ययन-अध्यापन के साथ साहित्यिक एवं सम-सामयिक लेखन में भी सक्रिय हैं। हिंदी साहित्य में गहरी रूचि। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में 100 से अधिक रचनाएँ प्रकाशित। सम्प्रति: वाराणसी में निवास। कई अंतरराष्ट्रीय शोध-पत्र प्रकाशित। अनेक संस्थाओं एवं संगठनों से जुड़े रहे हैं।
 संपर्क सूत्र–mohittripathivashisth27@gmail.com
पता: सरोज भवन डी 36/123 अगस्त्यकुंड, दशाश्वमेध, वाराणसी, उत्तर प्रदेश-221001
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