गर मुश्किलों में रखकर तूँ कोई हल निकाले
September 01, 2022 ・0 comments ・Topic: poem Siddharth_Gorakhpuri
गर मुश्किलों में रखकर तूँ कोई हल निकाले
गर मुश्किलों में रखकर तूँ कोई हल निकाले
जो टूट मैं गया तो रखना थोड़ा सम्भाले
आंसुओं की बारिश हो रही मुसलसल
सैलाब आ रहा है अब तो मुझे बचा ले
मैं तेरा हूँ! ये हरदम कहता था तूँ मुझी से
तो.. ले मैं कर रहा हूँ खुदको तेरे हवाले
रौशनी मैं दे रहा था ढलते ही शाम जिनको
वो दे रहें हैं दिन में अक्सर मुझे उजाले
औरों की बात तुमसे कहना नहीं मुनासिब
अब जिसकी जितनी मर्जी उतना मुझे सता ले
तेरे वायदे का क्या है जो तुमने कर दिया था
क्या वायदी लफ्जों को जेहन से हम हटा लें
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