गीत - वात्सल्य का शजर
September 01, 2022 ・0 comments ・Topic: geet Siddharth_Gorakhpuri
गीत - वात्सल्य का शजर
न गली दीजिए न शहर दीजिए
मुझको तो बस मेरी खबर दीजिए
मकां तो रहने लायक रहा अब नहीं
मुझे अपने वात्सल्य का शजर दीजिए
ढूंढ पाऊं मैं खुद को है चाहत मेरी
भ्रम में और जीना नहीं चाहता
रिश्ते हैं अब जहर और दुनियाँ जहर
इस जहर को मैं पीना नहीं चाहता
तुम से अर्जी हमारी है अंतिम प्रभो
मेरी दुआओं में थोड़ा असर दीजिए
मकां तो रहने लायक रहा अब नहीं
मुझे अपने वात्सल्य का शजर दीजिए
ख़ुशी के पल थोड़ी देर टिकते नहीं
कैसे रोकूँ इन्हें कुछ बता दो जरा
मैं कैसा हूँ ये बस है मुझको पता
मेरी सीरत को सबको दिखा दो जरा
चाहता हूँ तेरी छाँव पल भर के लिए
कौन कहता है के उम्र भर दीजिए
मकां तो रहने लायक रहा अब नहीं
मुझे अपने वात्सल्य का शजर दीजिए
ये जमाना किसी का हुआ है भला?
स्वार्थ की रीत है बस यही प्रीत है
खींचता है मुझे तेरी ओर प्रभो
मुझे दिख रहा बस तूँही मीत है
चल सकूँ खुद के खातिर मैं अबसे प्रभो
अब तो मुझको कोई ऐसी डगर दीजिए
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