आखिर तुम हो मेरे कौन?
September 30, 2024 ・0 comments ・Topic: poem Pratibha pandey
आखिर तुम हो मेरे कौन?
खिलते हो मुरझाते हो,आकर रोज सताते हो।
सुन्दर गीत एक सुनाकर,
मन बेचैन दर्पण बनाकर ।
सुधि आते हो बारम्बार,
करते हो मुझपर ऐतबार।
बात नहीं कर पाती तेरी,
रोकूॅ याद न रूकती तेरी।
आखिर तुम हो मेरे कौन??
प्रति रोम-रोम स्पन्दित होती,
सुधियों में आनन्दित होती।
आच्छादित प्रियवर बन कर,
आह्लादित उर करते मन भर।
अनमोल भाव तेरा ठाकुर,
तुमसे मिलन को हूॅ आतुर।
नेह नयन भर तुम जब आते ,
एक तुम्हीं हो मन को भाते।
आखिर तुम हो मेरे कौन??
भूलूॅ तुमको,जिद करती हूँ,
गम दूर बहुत हद करती हूँ।
रोती आहत नशीली आँखें,
करवट बदलती सोती रातें।
तनहाई प्रेम को तंग करता,
एकाग्रता को भंग करता।
मैं कितनी तुझमें पता नहीं,
मैं हूँ भी या नहीं? बता नहीं।
आखिर तुम हो मेरे कौन??
सपनों में चुम्बन ले भगते,
रिमझिम सावन से तुम लगते।
मृदुल हृदय को तुम हो जंचते,
पीर विरह की हम न कहते।
तुम नहीं जानते हो मुझको,
ये नयन खोजते हैं तुझको।
यदि मेरी बात पहुंच जाए ,
प्रेम प्रीति मन रूचिकर भाए।
फिर प्रेम भाव पाएंगे तुमसे,
उस दिन फिर पूछेंगे तुमसे ।
आखिर तुम हो मेरे कौन??
चेन्नई
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