जिंदगी की गहराई | zindagi ki gehrayi

जिंदगी की गहराई

जिंदगी की गहराई | zindagi ki gehrayi
गहरी नदिया, गहन अंधेरी रात में कोई उतरना नहीं चाहता है। फिर भी कुछ मजबूरियां होती हैं जो उतरने को मजबूर कर देती हैं। जीवन के हर पहलू में उजाला ही उजाला कहां रहता है।
श्याम भी जीवन के उजाले में रहकर, अंधेरे की कल्पना से ही कांप जाता था। जीवन जीने के लिए कागज के रुपए या सोना - चांदी, हीरा - मोती जैसे धातु जरूरी नहीं है। अमीरी-गरीबी तो आनी - जानी है।
जरूरी नहीं है कि, अमीर सुखी हो! किसी को सोने के चूल्हे में खाना बनाते देखा है क्या? सोने के बिस्कुट सिर्फ दिखाने के लिए हो सकते हैं, खाने के लिए नहीं!
जरूरी नहीं है कि, गरीब सुखी नहीं हो! गरीब दिन भर मेहनत करता है और रात में अपने परिवार के साथ हंसता है; बिंदास सुख की नींद सोता है। अमीरों की तरह गरीब का बनावटी, खरीदा सुख नहीं होता, वह तो प्राकृतिक सुख में जीता है।
श्याम के पास अरबों - खरबों का कारोबार तो नहीं था। परंतु श्याम के पास अनमोल खजाना उसका परिवार था।
श्याम के पास जो जमीन के टुकड़े थे, उनमें से श्याम का गुजर - बसर हो जाता था।
श्याम के खजाने में यद्यपि सभी रत्न बेमिसाल थे लेकिन, उन रत्नों में श्याम की पत्नी भारती अनमोल रत्न थी।
वास्तव में श्याम भाग्यवानों में श्रेष्ठ था। वह जब कभी अकेले काम करने खेत जाता था; तब वह बहुत थक जाता था। घर आने पर भारती जान जाती थी कि, मेरा श्याम थक गया है। तब भारती की कुछ प्रेम भरी बातें सुनकर उसकी थकी उतर जाती थी। भारती उसे हंसाने लगती थी। और तब तक साथ नहीं छोड़ती थी भारती श्याम का, जब तक वह संतुष्ट नहीं हो जाती थी कि, अब श्याम की थकी उतर गई है!
भारती काम कुछ करे या न करे, वैसे भी श्याम उसे काम नहीं करने दिया करता था; अगर भारती साथ होती तो श्याम को थकी लगती ही नहीं थी।
जीवन का हर लम्हा यादगार होता था श्याम का! भारती जैसी सुंदरता शायद ही किसी महिला में है; ऐसा श्याम का मानना था। सांवली सलोनी भारती तन की ही नहीं, मन की भी बहुत सुंदर थी।
भारती गौने में आई थी। तब सास ससुर, बड़े बूढ़े के आगे पति पत्नी का बोलना निर्लज्जता मानी जाती थी। फिर भी भारती सास ससुर के साथ श्याम का बहुत ही ख्याल रखती थी।
भारती गर्भवती हुई थी, श्याम के साथ सभी खुश थे। श्याम चुपके-चुपके, चोरी-चोरी से भारती के पास जाकर उसे अंक में भर लिया करता था। भारती भी उसे खूब प्यार किया करती थी।
भारती की ननद यानी की श्याम की बहन भारती से चिढ़ती थी। भारती की कोख में इस घर का चिराग या वंश बेल बेटी ही सही पल रही थी, फिर भी ननद रानी भारती की सास यानी अपनी मां के कान भरकर भारती को डांट दिला ही देती थी। कुछ भी हो श्याम इस अन्याय के खिलाफ बगावत पर उतर आया था। भारती तो अपने पिया के मन को जान लिया करती थी। भारती ने श्याम को समझाया, किसी तरह उसे अपनी बात मनवा ही लिया था।
कहते हैं भगवान भी उसी को तकलीफ देता है जो भगवान को मानता है। भगवान ने समय समय पर मां को, फिर बाप को उठा लिया था। वह तो होना ही था; किसी के बाप महतारी सभी दिन नहीं रहते हैं।
श्याम मां - बाप की मौत से बहुत दुखी था। भारती ने उसके कंधे पर हाथ रख दिया था। उसकी परछाई बन गई थी भारती! श्याम सबकुछ भूलकर अपनी पत्नी भारती के प्यार में मगन हो गया था।
बेटे की शादी, धर्म - कर्म में भारती श्याम के कंधे पर भार नहीं आने दिया था। भारती की एक मुस्कुराहट से श्याम कैसी भी परिस्थिति हो वह भूल जाता था। जब भारती कहती, "बिट्टू के पापा घबड़ाना नहीं, मैं हूं ना!"
श्याम की ताकत चौगुनी हो जाती थी। श्याम भारती के साथ बहुत खुश था।
भगवान से श्याम की खुशी देखी नहीं गई थी। भारती अचानक बीमार पड़ गई थी। श्याम ने अपनी हैसियत से भी ज्यादा खर्च करके भारती की दवा कराई थी। दवा - दुआ कुछ भी काम नहीं किया।
श्याम से भारती ने कहा था, "बिट्टू के पापा, जो मिले खा लेना अब नखरे नहीं करना, तुम्हारे नखरे मेरे लिए तुम्हारा प्यार था। अब तुम्हारी भारती नहीं रहेगी तुम्हारे प्यार को पाने की हकदार एक तुम्हारी भारती है और दूसरा कोई क्या जाने? फिर तुम्हारी भारती जैसा भाग्य किसका है जो तुम्हारे प्यार को पा सके!"
श्याम का कलेजा फट गया था। आंखें नम थीं; जुबान कहना चाहती थी कुछ, पर कह नहीं पा रही थी।
श्याम ने अपनी भारती को बचाने के लिए रात दिन एक कर दिए थे। फिर भी कोई फायदा नहीं हुआ। एक दिन भारती श्याम को अकेला छोड़कर चली गई। श्याम चाहता था कि, जमीन फट जाए और वह उसी में समा जाए! पर ऐसा कहां होने वाला था।
श्याम को एक विधवा मित्र चैट में कहती है, "श्याम शायद भगवान को यही मंजूर था!"
असमय भारती की मौत से श्याम टूट चुका है। श्याम कहता है, "मुझे ईश्वर ने जीने का तो अधिकार दिया है; परन्तु जीवन का अधिकार नहीं है!"
अब श्याम के जीवन में कभी बसंत नहीं आएगा; वह एक पतझड़ वाले सूखे ठूंठ पेड़ की तरह खड़ा है बस!
श्याम सोचता है, जीवन की गहराई को कोई कहां माप सकता है। अब तो मृत्यु चिंतन करना है, पता नहीं कब अपना नंबर आएगा!
सदा जीवन का उजाला देखने वाला श्याम, आज जीवन के गहन अन्धकार में फड़फड़ा रहा है। विषाद की उफनती गहरी नदिया, जिसके किनारे का श्याम को पता नहीं है। फिर भी उतरना पड़ा है उसे; अब तो जाने कब ऊपरवाला उसे पार लगाएगा।
श्याम इस परिस्थिति में भी, अकेला होते हुए भी प्रार्थना करता है कि, "मेरी भारती से मुझे मिला देना, दूसरे जन्म में अलग-अलग नहीं बुलाना, हम दोनों को एक साथ ही बुला लेना!"
जिंदगी की गहराई को आज तक कोई नाप नहीं सका है। जिंदगी अपनी नहीं है, कठपुतली की तरह इसकी भी डोर किसी और के पास है।

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डॉ. सतीश "बब्बा" पता - डॉ. सतीश चन्द्र मिश्र

डॉ. सतीश "बब्बा"
पता - डॉ. सतीश चन्द्र मिश्र, ग्राम + पोस्ट = कोबरा, जिला - चित्रकूट, उत्तर - प्रदेश, पिनकोड - 210208.

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