kavita - Gyani abhimani mosam khan alwar
अज्ञानी अभिमानी
सबसे अच्छा है तू इंसान ,
सबसे ज्यादा है तेरा सम्मान,,
पल भर की ये तेरी जिंदगी,
अज्ञानी कितना है अभिमान।।
तू संस्कार से संस्कारित है
मानवता को लिए धारित है,
सबकुछ मांगा है जिंदगी का
फिर अज्ञानी कियू हर्षित है।।
तुझको जीवन दिया है रब ने,
प्रकृति में तुझे माना सबने ,
ए नादान मुसाफिर ,सुनले ,
अज्ञानी कितना है अभिमान।।
तेरी राह थी आसान,
हक हलाल की कर पहचान,
छोड़ बेईमानी कर इंसाफ,
अज्ञानी कर रब की पहचान,
एक दिन टूटेगा अरमान,
सूना रहेगा तेरा मकान,
छोड़ देंगे दो कदम साथ चल के
अज्ञानी फिर टूटेगा अभिमान,
अब तू जिंदगी से जागेगा,
काल कोठरी से कहा भागेगा,
कर सामना अपने कर्मो का,
हैं अज्ञानी तेरा कहा गया अभिमान
है इंसान तू है कितना नादान,,
स्वरचित मौसम खान
अलवर (राजस्थान)