Kash aisa ho jaye by Jitendra Kabir

 काश ऐसा हो जाए

Kash aisa ho jaye by Jitendra Kabir


मैं सोचता हूं कि काश

इस बार नवरात्रि में

देवी दुर्गा जब अपने मायके 

( धरती ) पर आएं

तो इस धरती की सब बच्चियों,

लड़कियों व महिलाओं में

अपनी शक्ति का एक अंश 

समाहित करके 

उन्हें अपनी तरह दिव्य बना जाएं,

ताकि हवस में अंधा कोई भी पुरुष

बल-प्रयोग और धोखे  से उनके ऊपर

बलात्कार न कर पाए।


या फिर कम से कम

जितने भी लोग इन दिनों

अपनी सुख-समृद्धि के लिए

कर रहे हैं देवी की पूजा-आराधना,

वो सभी लोग अपना निज स्वार्थ त्याग

समस्त औरत जात को 

इस जघन्यतम अपराध से

बचाने के लिए प्राणपण से जुट जाएं,

तो शायद उनका साल दर साल

देवी दुर्गा के रूप में

कन्याओं को पूजना सफल हो जाए।


                            जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314

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