कविता बोलती जिन्दगी-डॉ हरे कृष्ण मिश्र

बोलती जिंदगी

कविता बोलती जिन्दगी-डॉ हरे कृष्ण मिश्र
बोलती जिंदगी,
पूछती रह गई,
कुछ तो बोल,
मौन क्यो हो गये ?
धर्म के नाम पर,
कर्म के नाम पर,
आज क्यों बट रहे
कुछ तो बोल। ।।

बोलती जिंदगी-
त्याग का महत्व है,
त्याग कितना किया,
जिंदगी तू बता ।
निस्वार्थ त्याग है कहां,
तू बता ,
बोलती जिंदगी
पूछती अनेक प्रश्न ।

जिंदगी के प्रश्न पर,
मौन हैं हम सभी ,
हम सभी घिर गए ,
बोलती है जिंदगी ।
चरित्र के निर्माण पर ,
काव्य के विकास पर ,
कुछ तो लिख ,
बोलती है जिंदगी ।




चित्र बनते गए ,
चरित्र तो बना नहीं ,
बोलती है जिंदगी
मौन क्यो हो गये ।
पहचान तो चरित्र है ,
कह रही है जिंदगी ,
बोलती कलम जहां ,
बोलती है जिंदगी। ।

जाति और धर्म के ,
नाम पर है बटा ,
तू बता ,
क्यों मेरी जिंदगी ।
स्वार्थ में तो डूब गई ,
आज मेरी जिंदगी ,
उंगली उठा रही ,
बोलती जिंदगी। ।।

बोलती जिंदगी ,
मंच है तेरा मेरा ,
आओ मिलकर लिखें ,
देश के लिए जिए।
देश है जहान है ,
हम और आप हैं ,
हम और आप,
राष्ट्र की पहचान हैं। ।।

एक समीक्षा है अगर,
बोलती जिंदगी ,
आज तक किया है क्या?
पूछती है जिंदगी
जिंदगी तू बता ,
बोलती जिंदगी। ।

डॉ हरे कृष्ण मिश्र
बोकारो स्टील सिटी
झारखंड ।

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