Harna mat man apna by jitendra kabir
July 11, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
हारना मत मन अपना
कारोबार अथवा नौकरी में आ रही
परेशानियों से हार मत बैठना
कभी मन अपना,
धीरज से लेकर काम थोड़ा
उन्हें हल करने की कोशिश करना,
क्योंकि जरा सोचो
तुम्हारे पास कम से कम ऐसा
कुछ है तो सही,
दुनिया में बहुतों के लिए कारोबार या नौकरी
भी है एक सपना।
घर-परिवार, नाते-रिश्तेदारी में चल रही
कलह से हार मत बैठना
कभी मन अपना,
करना पड़े समझौता थोड़ा
शांति बनाए रखने को तो जरूर करना,
क्योंकि जरा सोचो
तुम्हारे पास यह सब कम से कम
हैं तो सही
दुनिया में बहुतों के पास तो घर-परिवार
ही नहीं है अपना।
जिंदगी में चल रही उथल-पुथल और
कठिनाईयों से हार मत बैठना
कभी मन अपना,
ठंडे दिमाग से सोचकर थोड़ा
इसे जीवन का ही भाग समझना,
क्योंकि जरा सोचो
तुम्हारे पास कम से कम
जीवन है तो सही
दुनिया में बहुत लोग तो कामयाब ही नहीं हो पाते
जीवन बचाने में अपना।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314
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