Barsati sawan by antima singh
कविता- बरसाती सावन
देखो! बादल व्योमांश में घनघोर घिर उठे हैं,
वन मयूरों के पंखों के पोर खिल उठे हैं,
लो आ गया बरसाती सावन का महीना,
हर तरफ निर्जनों के मन विभोर हो उठे हैं।
हैं झींगुरों की झंकारें गूंजती कहीं,
तो कहीं दादुरों के टर्र-टर्र के शोर सो उठे हैं,
कहीं प्रीयतम संग नाच रहा भींग के कोई,
कोई प्रिय-सुध अमिय में डूब सराबोर हो उठे हैं।
कैसी हर्षायी है सब कृषक मंडली,
कहीं पपीहा के पिउ-पिउ के टोह सो उठे हैं,
अंबुद पिला रहे हैं असीमित मधु कलश वारि,
धरा पीती ही जा रही सिथिल सब चोट हो उठे हैं।
धन्यवाद!
-अंतिमा सिंह (स्वरचित,मौलिक एवं अप्रकाशित काव्य)