वो सुप्रभात संदेश जिसने झकझोरा | the good morning message that shook
June 13, 2023 ・0 comments ・Topic: lekh Veena_advani
वो सुप्रभात संदेश जिसने झकझोरा
जैसी ही सुबह हुई सभी के सुप्रभात के संदेश देख अंतर्मन को एक तृप्ति सी अनुभव होती है। ये पता चलता कि हमारे प्रिय सभी आज पुनः प्रभु के दिये नवजीवन से पुल्कित हुए हैं। उन्हीं सुप्रभात संदेशों संग कुछ प्रिय सम्मानित साहित्यकार कुछ अपने मन की ऐसी अभिव्यक्ति लिख काग़जों पर उड़ेल स्याही संग भेज देते की जिसे पढ़ कर अंतर आत्मा खूब सुकून प्राप्त करती और ऐसा लगता पढ़कर की जैसे वो शुभ सोच हमारे जीवन, हमारे समाज पर सटिक बैठ रही है, जैसे वो खरा दर्पण दिखा हमें रूबरू करवा रही हकीकत भरे आईने मे चेहरा दिखा हमारा। कभी ऐसा लगता कि हमारे ही मन के भीतर के मैल को दिखाकर, हमें उससे मिलाकर खुद के ही नज़रों मे जैसे शर्मिंदा कर दिया हो। ठीक उसी तरह एक शुभ विचार सुबह -सुबह जब मुझे नागपुर के जाने माने साहित्यकार, पत्रकार सम्मानित नरेंद्र परिहार जी ने भेजा तो पढ़ कर अचंभित रह गयी, सोचने पर विवश कर दिया कुछ पंक्तियों ने की कैसे दुनिया की सबसे बड़ी कड़वी सच्चाई पर किसी ने आज तक कलम नहीं चलाई। रोक न सके उन विचारों को पढ़कर खुद को कलम चलाने से पर उड़ेल दिया आज मैंने भी अपने भीतर पनप रही वेदना को कागजों पर जो चीख चीख कर कह रहे हैं की कोई तो हो जो समाज को आईना दिखा सके। मेरी आंखों में से अश्रु की धार बही जा रही थी। खुद के अश्रुओं को रोकने का बेहतरीन जरिया था मेरी कलम। सच मेरी कलम जो मेरे दर्द, ज़ख़्म पर मरहम लगाती है। उसी कलम का साथ मांगा और कलम ने भी मेरा साथ दिया। जानते हैं वो शुभ विचार क्या थे नरेंद्र परिहार जी द्वारा भेजे गये आप पढ़िये,पत्थर पर थोड़ा सा सिंदूर लगाया तो वह देवता बना पूजा जाता है। वहीं नारी के भाल पर सिंदूर लगता है और देव नर कैसे हो जाता है। अतः समझो जो सिंदूर से अलंकृत हो वही समाज,भक्त , परिवार का निर्माण करता है ।लगाने वाले को तो बस विश्वास का निर्माण करना है ।
शुभ प्रभात जी।।
जी हां यही हैं वो शब्द जिसने कसौट के रख दिया मेरे अंतर्मन को, सच लोग या ये कहूं कि पुरुष प्रधान बहुत से अपने घर से कार्यस्थल जाते वक्त या घर से ही निकलते वक्त अपने पूज्य आराध्य देव की भक्ति भाव से पूजा करते हैं। उनका श्रृंगार भी करते, फूल चढ़ाते, सिंदूर से तिलक कर श्रृंगारते उस देवता को जिसमें उनका अटूट विश्वास है। जिन्हें वो अपने सबसे करीब समझते। वो भगवान जो हम संग बोलते नहीं परंतु हमारी हर एक भावनाओं आशाओं के अनुरूप हमारी भावनाओं का सम्मान कर पल-पल साथ निभाते। सच भगवान जो है तो मात्र पत्थर की मूरत परंतु हमारे हृदय के सबसे करीब हमारे हर एक पल की जिसे जानकारी होती। देवियों को भी पूजते। मतलब हमारे संस्कार धर्म हमें ये बताते की हमें अपने इष्ट देव का तिलक सिन्दूर से करने पर देवता प्रसन्न होते तिलक बिना उनका श्रृंगार अधूरा है।
तो एक बात बताइए एक देवी जिसे आप सभी नर अपनी खुशी से श्रृंगार की हुई जिसके माथे पर आपने तिलक लगा उसके ललाट पर, और जिसकी मांग मे सिंदूर भरा, जिसके हाथों मे आपके नाम की मेहंदी लगी उस देवी के साथ अभद्र व्यवहार क्यों? फ़र्क बस इतना कि वो बोल सकती है, अनैतिक व्यवहार का विरोध कर सकती है, वो इंसान हैं देवी नहीं ये सोच आपकी? क्यों एक जीती-जागती देवी को जिसको धूमधाम से घर मे लाकर आप स्थापित तो करते परंतु क्यों उसको वो सम्मान नहीं देते जो आप अपने इष्ट देव को देते? जब की औरत एक जीती-जागती भगवान है जरा दिल से सोचके तो देखो। वो औरत जो ब्रह्माण्ड तो नहीं रची। परंतु एक इंसान चाहे वो नर हो या मादा उसकी रचना की तो वो औरत कहां किसी देवता से कम हुई। भगवान ने उसे धरा पर भेजा की अपनी जान पर खेल कर इंसान को धरा पर लाना तेरी जिम्मेदारी है। तो उस परमपिता परमेश्वर के द्वारा भेजी गयी देवीदूत जो की इस धरा पर इंसान की बस्ती को खत्म होने से बचाती उसी देवी के ललाट भाल पर आप सिंदूर से श्रृंगार कर उसे ही पैरों की जूती बनाके रखना चाहते ये बिल्कुल भी उचित नहीं है। नारी को प्रताड़ित कर यदि आप मंदिर मे देवों को श्रृंगारित कर ये दिखाते हैं कि आप बहुत बड़े भक्त हैं तो यह सरासर गलत होगा खास करके मेरी नजरों मे ऐसी पूजा किसी भी काम की नहीं जो सिर्फ मंदिरों में जोर जोर से घंटी बजाकर दुनिया को दिखाई जाए। और घर की देवी को सिंदूर लगा श्रृंगार करके भी उसके साथ अभद्र व्यवहार किया जाए। शायद कुछ ज्यादा ही भावुक हो गयी में मेरे भावुकता को काग़ज़ों पर उतार रूबरू करवा दिया उन नर भक्तों को जो सिर्फ मंदिरों में घंटी बजा दिखावा करते। ढोंग करते। सिंदूर वो है जो एक विश्वास पैदा करता उस देवी स्वरूप नारी के दिल मे पुरूष के लिए की यही हमारा पालनहार, रक्षक, यही हमारे देव नहीं बनेंगे कभी ये भक्षक। पर क्या सच जो सिंदूर लगा आपने विश्वास से भरा है नारी को क्या उस विश्वास की कसौटी पर आप खरे उतरते। क़त्ल कर देते उस विश्वास के मजबूत धागे का और झकझोर देते एक देवी को विरह की वेदना मे। तो बताओ क्या भगवानों के द्वारा भेजी गई एक देवीदूत को आप सम्मान ना दे सके, तो मंदिरों की देवी जिसके ललाट पर आपने सिंदूर लगा सिंगार किया वो देवी प्रसन्न होगी। मत करो इतना क़त्ल किसी के विश्वास का की देव जो हमारे आराध्य हैं वो तक हमसे रूठ जाएं। पहले घर की देवी पूजें फिर मंदिरों मे घंटी बजाऐं।
About author
वीना आडवाणी तन्वी
नागपुर , महाराष्ट्र
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com
If you can't commemt, try using Chrome instead.