फर्ज/farz
August 12, 2022 ・0 comments ・Topic: Jayshree_birmi poem
फर्ज
कहां से लाए वह दिलों की तड़पजो थी भगत सिंघ ,राज्यगुरू और आज़ाद में
अब तो सिर्फ बातें बड़ी और ठंडे से दिलों की बात रह गई हैं
क्यों हैं राजनीति देश भक्ति में भी
देश द्रोह कानूनन जुल्म नहीं
उछाल देते हैं थूक प्रख्यात होने के लिए
तैयार रहते हैं अपनी ही मां को बदनाम करने के लिए
क्यों चाहिए इस देश से बताओं जरा
अंत समय में उसी के पंच महाभूतों में मिल जाओगे
सनातनी तो राख हो मिल जायेगा पवित्र नीर में
कुछ लोगों तो ये कयामत तक संजो के अपनी गोद में
छोड़ो ये तानाकशी के आलम को प्यार दो प्यार लो
नहीं करो पलट वार कभी
माता हैं ये हमारी कितनी बार उसे बांटोगे
ये वो नहीं जिसे तुम वृद्धाश्रम छोड़ आओगे
संभालों और संभलो अभी भी वक्त हैं
देखो उन्हे जिन्होंने किया अंदर अपनी मातृभूमि को
भटक रहे हैं वे दर दर कुछ निवालों के लिए
आज तुम बच भी जाओगे तो बच्चों क्या दे जाओगे
सेवानिवृत शिक्षिका
अहमदाबाद
अहमदाबाद
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