शान_ए–वतन/shan-a-vatan

शान_ए–वतन

ऐसा नहीं कि तुम लौट कर ना आओ
तुम बिन तो हमारी सीमाएं नंगी हो जायेगी

ना ही बचपन पनपेगा ना ही जवानी खिलखैलाएगी
रौंद देंगे इंसानियत के दुश्मन

एक दिन इस दरवेश को
जिसने लड़ी अनेकों लड़ाइयां

पाने को अपने ही देश को
लड़े थे नर और नारियां भी

छोड़ के सारे रिश्ते नाते ऐश और आराम को
कोई भटका जंगल जंगल तो

किसी ने छोड़ी राजगादी
ना छूटी तो वह लत थी जिसे कहते हैं आज़ादी

कोई जुला फांसी पर तो किसी ने जेली गोली
तुम भी तो इस देश के वीर हो

आज चले भी गए तो भूलेंगे ना हम
पर फिर एकबार आओगे जरूर लौट के तुम
हां हां आओगे जरूर तुम

About Author

जयश्री बिरमी सेवानिवृत शिक्षिका  अहमदाबाद

जयश्री बिरमी
सेवानिवृत शिक्षिका 
अहमदाबाद
Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url