Story-वो बारिश( wo barish)

 वो बारिश

Story-वो बारिश( wo barish)

बीना ने जब देखा कि बारिश रुक गई हैं तो उसने यहां वहां रखे छोटे बड़े बर्तन और बाल्टियों को हटाया और बिना आहट किए बाल्टियों को बाथरूम में और बर्तनों को रसोई घर में रख आई।शुक्र था कि पानी कोई बिस्तर पर नहीं गिर रहा था इसलिए बच्चे और बिशन आराम से सो रहे थे।घर तो काफी बड़ा था किंतु इतना पुराना होने की वजह से कच्ची छत से पानी टपक रहा था।कई बार सोचा कि सब ठीक करवाएं किंतु इतना पैसा लाएं कहां से।पहले वाले हालत तो थे नहीं।बिशन को भी तो इस उम्र में कौन अच्छी नौकरी देता 45 पार कर चुके थे।बच्चे भी तो अभी छोटे थे 12 साल की मेहा और 15 साल का विहान अभी अभ्यास कर रहे थे।बिशन की थोड़ी सी तनख्वाह में घर का गुजारा मुश्किल से हो पाता था वहां घर की देखभाल हो ही नही पाती थी।इतना था कि सर पर छत अपनी खुद की होने से किराया नहीं भरना पड़ता था।नींद नहीं आ रही थी उसे तो पुराने दिनों की याद आई,जब वह शादी करके इसी घर में गृह प्रवेश किया था तो बड़े ही प्यार और सम्मान से उसे कई रीती रिवाजों के साथ उसका स्वागत हुआ था। सास सरला तो पागल हुई जा रही थी इतनी सुंदर बहु को पाकर।ससुर सुंदरलाल जो ज्यादा बोलने के आदि नहीं थे लेकिन उनके मुख मंडल की खुशी बिन बोले भी बहुत कुछ कह जाती थी।दिन बीतते गए और बिना अपनी गृहस्थी में व्यस्त रहने लगी। सास से रसोई घर के सारे इंतजाम और गृहस्थी चलाने के सारे नुस्खे वह सिख रही थी। सात साल बीत गये विहान के आने के इंतजार में।फिर विहान का जन्म हुआ तो वो खुशियां छाई थी घर में कि पूछो मत।

ससुर ने भी पुश्तैनी कोठी को खूब सजाया था और मिठाइयों के डिब्बे पूरे गांव में घर घर पहुंचाया था।खुशियों को जैसे इतना बड़ा घर भी छोटा पड़ रहा था।

  उन खुशियों को शायद बुरी नज़र लग गई थी,विहान पांच महीनों का था और दुकान से बिशन भागे भागे आएं और बताया कि बाउजी को अस्पताल में दाखिल करवाके आएं था उनको दिल का दौरा पड़ गया हैं।और बीना को विहान को संभालने का कह सास सरला बिशन के साथ गाड़ी में बैठ गई।बारिश थी कि अनवरत बरसे जा रही थी जल थल एक हुए जा रहे थे।कुदरत भी शायद रूठ रही थी।

लेकिन जब वापिस आए तो सुंदरलालजी के पार्थिव शरीर के साथ।फिर तो उनकी अंतिम क्रिया में आएं रिश्तेदारों में भी कुछ भूनभुनहट चलती रही थी लेकिन किसी ने कुछ कहा नहीं।फिर मुंशीजी ने बिशन और सरला को बताया कि बहुत बड़े काम हाथ लगे थे तो सुंदरलाल जी ने किसी पीढ़ी से बहुत बड़ा उधार लिया था लेकिन काम भी हाथ से चला गया और पैसा भी,शायद इसी वजह से सुंदरलालाजी को ये दिल का दौरा पड़ा था।

 उन पैसों को चुकता करने के लिए बिशन ने मुंशीजी ने साथ मिल सब कुछ बेचने की ठानी तो मकान को छोड़ सब जमीनें,गहनें और जो कुछ था वह बेच के कर्ज उतारा।सरला को दो दो धक्के लगे थे,एक तो सुहाग उजड़ा और दूसरा आर्थिक नुकसान, जो सह पाना मुश्किल लगा तो वह भी चुप चुप बैठी रहने लगी,घर के सभी नौकरों को उनकी तनख्वाह दे हाथ जोड़ छुट्टी करदी।सिर्फ मौसी ही बची थी जिसके नाम को शायद कोई नहीं जानता था,बड़े छोटे सब मौसी के कर ही बुलाते थे।

मौसी ने जाने से मना किया कि उसे तनख्वाह नहीं इस घर का आसरा चाहिए,खाने पीने को मिले वही बस था और वह नहीं गई तब से उनके साथ ही हैं।सरला भी कुछ दिनों में दुनिया छोड़ गईं उसके कुछ महीनों बाद ही

 मेहा का जन्म हुआ था तो सब को था की मां ही बेटी बनके आई हैं।बिशन ने कुछ कारोबार करने की सोची तो सही किंतु बिना पैसे के कैसे कर पता।छोटी मोटी नौकरी कर निर्वाह चलाते चलाते आज 12 साल बीत गए।

      जोर से बिजली कड़की बारिश गिरने की आवाज से बिना पुरानी यादों से बाहर आई और वापस रसोई से बर्तन और बाथरूम से बाल्टियां ला जहां जहां पानी गिर रहा था वहां रखने लगी।

जयश्री बिर्मि


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