kavita abhilasha by anita sharma

June 09, 2021 ・0 comments

अभिलाषा

जब प्राण तन से निकले, तब पास तुम ही रहना। आँखे मेरी खुली हो, पलकें तुम ही बंद करना। देना विदा मुझे तुम , न अश्रुधार बहाना। सोलह शृंगार करके, दुल्हन सी मुझे सजाना। अग्नि मेरी चिता को, तुम कर कमलों से देना। समय के साथ जीवन, अपना तुम सजाना। जब प्राण तन से निकले, तब आस पास ही रहना। अलविदा हर रिश्तों से, कह पिण्डदान करना। अस्थियों को मेरी, गंगा में तुम बहाना। फिर याद न मुझे तुम, जीवन में फिर करना। अनिता शर्मा झाँसी स्वमौलिक रचना

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