kavita bhavnayen barish ki by sudheer shrivastav

June 08, 2021 ・0 comments

 भावनाएँ बारिश की

kavita bhavnayen barish ki by sudheer shrivastav


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ये भी अजीब सी पहली है
कि बारिश की भावनाओं को तो
पढ़ लेना बहुत मुश्किल नहीं
समझ में भी आ जाता है
पढ़कर समझ में भी आता है।
परंतु भावनाओं की बारिश
कब, कहाँ कैसे और
कितनी हो जाय ,
कोई अनुमान ही नहीं।
हमारी ही भावनाएं
कब, कहाँ, कैसे और कितनी
कम या ज्यादा बरस जायेंगी
हमें खुद ही अहसास तक नहीं।
भावनाओं की बारिश के
रंग ढ़ग भी निराले हैं,
अपने, पराये हों या दोस्त दुश्मन
जाने पहचाने हों या अंजाने, अनदेखे
जल, जंगल, जमीन, प्रकृति,
पहाड़, पठार या रेगिस्तान
धरती, आकाश या हो ब्रहांड
पेड़ पौधे, पशु पक्षी ,कीट पतंगे,
झील, झरने,तालाब ,नदी नाले
या फैला हुआ विशाल समुद्र,
सबकी अपनी अपनी भावनाएं हैं
और सबके भावनाओं की
होती है बारिश भी।
इंसानी भावनाएं होती सबसे जुदा,
इन्हें और इनकी भावनाओं को
न पढ़ सका इंसान तो क्या
शायद खुदा भी।
भावनाएं और उसकी बारिश की
लीला है ही बड़ी अजीब सी।
● सुधीर श्रीवास्तव
      गोण्डा, उ.प्र.
©मौलिक, स्वरचित

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