kavita- pacchim disha ka lamba intjaar by mahesh keshari

 पच्छिम दिशा का लंबा इंतजार.. 

kavita- pacchim disha ka lamba intjaar by mahesh keshari


मंझली काकी और सब 
कामों के  तरह ही करतीं
हैं, नहाने का काम और 
बैठ जातीं हैं, शीशे के सामने
चीरने अपनी माँग.. 

और अपनी माँग को भर 
लेतीं हैं, भखरा सेंदुर से, ..
भक..भक...
और
फिर, बड़े ही गमक के साथ 
लगाती हैं, लिलार पर बड़ी
सी टिकुली..... !! 

एक, बार अम्मा नहाने के
बाद, बैठ गईं थीं तुंरत
खाने पर, 
लेकिन, तभी 
डांटा था मंझली काकी 
ने अम्मा को....

छोटकी , तुम तो
बड़ी, ढीठ हो, जब, तक 
पति जिंदा है तो बिना सेंदुर
लगाये, नहीं खाना चाहिए 
कभी..खाना... !! 

बड़ा ही अशगुन होता है, 
तब, से अम्मा फिर, कभी 
बिना सेंदुर लगाये नहीं
खाती थीं, खाना... !! 

मंझले काका, काकी से
लड़कर  सालों पहले 
काकी, को छोड़कर कहीं दूर 
निकल गये.. पच्छिम... 
बिना..काकी को कुछ बताये.. !! 
 
गांव, वाले कहतें 
हैं, कि काकी करिया
भूत हैं,...इसलिए
भी अब  कभी नहीं 
लौटेंगे  काका... !! 

और कि काका ने
पच्छिम में रख रखा 
है एक रखनी और... 
और, बना लिया है, उन्होंने
वहीं अपना घर...!! 

काकी पच्छिम दिशा में
देखकर करतीं हैं
कंघी और चोटी और भरतीं
हैं, अपनी मांग में सेंदुर.. 
इस विश्वास के साथ 
कि काका एक दिन.. जरूर... 
लौटकर आयेंगे.... !! 

सर्वाधिकार सुरक्षित

महेश कुमार केशरी 
C/ O -मेघदूत मार्केट फुसरो
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