kavita Prithvi by priya gaud

June 27, 2021 ・0 comments

 "पृथ्वी "

kavita Prithvi by priya gaud



पृथ्वी के उदर पर जो पड़ी हैं दरारें

ये प्रमाण है कि वो जन्म चुकी है शिशु

इतंजार में है उस मरहम के

जो भर दे उसकी दरारें

और खिल सके पृथ्वी की कोख़ में

नन्ही नन्ही कोपलें

लौट आए बसंत

फिर खुद पर इतराए जंगल

हरे भरे हो पेड़ औऱ पहाड़

सुनाई दे पंक्षियों का कलरव

और पंख पसारे नाचे मोर

पूरी धरती सजे अपने जन्मे अनगिनत

बच्चों के हर रंग से राग से प्यार से

जिए उसका ख़ुद का बसन्त

जो सौंपा है उसने हमारे हाथ सदियों से.....

-प्रिया गौड़ 

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