kavita thahar gyi hai nadi by ajay kumar jha
June 02, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
ठहर गई है नदी!

मूक क्यों हो कुछ तो कहो
कर्णभेदी गूंज में हूंकार करो
ठहरे जल में कंकर उछाल
अधोगति के बंध तोड़ दो
सृजित लहरों की गति से
उत्ताल तरंगों की संगति से
जमे जलकुंभी अवसाद को
प्रबल प्रवाह का प्रतिघात दो
जीवन प्रवाह को सदगति दो
श्रम शोणित को सम्मान दो
करुण क्रंदन में उल्लास भरो
इतिहास में अध्याय अंकित करो.
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@ अजय कुमार झा.
31/5/2021.
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