kavya alochak aur prasansahak by jitendra kabir

 आलोचक और प्रशंसक

kavya alochak aur prasansahak by jitendra kabir



आलोचना का एक पहलू...


अक्सर हम अपने आलोचकों से

मन ही मन रहते हैं परेशान,


मौका ना मिले हमारी बुराई का उनको

रखते हैं इस बात का खास ध्यान,


नजदीक नहीं फटकना चाहते उनके

रखते हैं पूरा स्वाभिमान।


दूसरा पहलू...


आलोचक हों अगर आस-पास तो

रहते हैं हम ज्यादा सावधान,


उसको गलत साबित करने के लिए

मेहनत करने में लगा देते हैं जान,


बहुत बार हमारी सफलता में उनके

कटाक्षों का भी होता है योगदान।



प्रशंसा का एक पहलू...


हममें से बहुत लोग अपने प्रशंसकों से

घिरे रहने को देते हैं अधिमान,


खुश रहते हैं अपने बारे में उनसे सुनकर

प्रतिभा-योग्यता के व्याख्यान,


रुपये-पैसे से भी करके मदद उनकी

देते रहते हैं अपनी सदाशयता का प्रमाण।


दूसरा पहलू...


घिरे रहें चापलूसों से ही हर समय अगर

तो मन में जाता है बड़ा अभिमान,


अपनी कमियों गलतियों के प्रति 

लगातार कम होता जाता है हमारा ज्ञान,


इस तरह अति आत्मविश्वास के चलते

कर बैठते हैं हम कई बार अपना नुकसान।


                                    जितेन्द्र 'कबीर'

यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।

साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'

संप्रति - अध्यापक

पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश


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