Laghukatha rani beti raj karegi by gaytri shukla
रानी बेटी राज करेगी
बेटी पराया धन होती है, यह सत्य बदल नहीं सकता । अगर आप शांति से विचार करें तो विवाह के बाद बेटी के जीवन में दखलंदाजी करना अनुचित है । यही कारण है कि बेटी एक जिम्मेदार पत्नी, बहू नहीं बन पाती । बेटी को अपने ससुराल में स्वयं को ढालने का वक्त तो दें । सभी तो नहीं पर कुछ माताओं के कारण ही बेटी कभी भी ससुराल को अपना नहीं पाती । बेटी के लिए ससुराल नई जगह नया परिवेश है उसे अपनी जड़े जमाने तो दीजिए । बेटी है वो हमेशा अपनी माँ की ही सुनेगी, मानेगी इसलिए उसे अपनी सास की बहूरानी बनने के लिए स्वतंत्र कीजिए । आज जमाना बदल गया है हर माता -पिता बिटिया को सुशिक्षित करने के बाद ही, परिपक्व होने के बाद ही उसके विवाह की बात सोचते हैं । तो अब उसमें अपना भला बुरा समझने, परिस्थितियों का सामना करने और यथोचित व्यवहार करने का विवेक है । उस पर और अपने दिए संस्कारों पर पूरा भरोसा तो रखिए । हाँ यह उचित है कि समय-समय पर उससे बातचीत करें पूरे परिवार का हालचाल लें किन्तु भेद लेने और सलाह थोपने से बचें । आपने ठोक बजाकर ही बिटिया का विवाह तय किया होगा तो अब कैसा संशय? फिर भी अगर कुछ ऊँच - नीच की स्थिति आती है तो बेटी के ससुराल पक्ष से खुलकर बात किए बिना किसी नतीजे पर न पहुंचे । माना कि आपकी लाडली है, उसके बिना आपका घर सूना हो गया है, फिर भी उसे रात - दिन फोन करके उसके निजी जीवन में हस्तक्षेप न करें यही उसके सुखद भावी जीवन के लिए उचित होगा ।ऐसा नहीं है कि हमारी बेटी कभी गलत नहीं हो सकती पर गलती भी करे तो ससुराल वालो के साथ ही आपसी तालमेल बनाकर सुधार ले और आगे बढ़े ऐसा आत्मविश्वास बेटी में पैदा कीजिए , ऐसा व्यवहारकुशल बनाइए उसे । यकीन मानिए इस तरह वह स्वयंसिद्धा बन पाएगी ।बिटिया के माता-पिता उसका संबल जरूर बनें पर निर्देशक नहीं । मैने किसी को कहते सुना था " अजी बेटी पालकर बड़ी की है कोई भेड़ बकरी नहीं जो ससुराल वालों को सौंपकर भूल जाएँ ।"
सही बात है आपने बिटिया पाली है भेड़ बकरी नहीं, फिर अपनी परवरिश को स्वतंत्र छोड़कर तो देखिए । जमीन आसमान का अंतर है, बेटी और भेड़ - बकरी में ।बेटी को संस्कार और शिक्षा दी है आपने भेड़ों को नहीं देते उन्हे तो इच्छानुसार हाँकते हैं बस ।
ठीक है कि जमाना बदल गया है, इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि हमारी संस्कृति भी बदल दी जाए । हमारी भारतीय संस्कृति ही तो हमारी आन - बान - शान है । आज भी बेटी दो कुल का मान बढ़ाती है । इसलिए आवश्यकता है कि बेटी को यथोचित कुल की मर्यादा बनाए रखने और सामर्थयनुसार परंपरा निभाने की प्रेरणा दें , क्योंकि वह भावी माँ है जो कुल की मर्यादा की शिक्षा आने वाली पीढ़ी को सौंपेगी । माँ - बेटी के रिश्ते को हल्के में बिल्कुल न लें यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है ।
परिवार और समाज को एक ऐसी नारी की सौगात देती है माँ अपनी बेटी परवरिश के रूप में जिससे नारी जाति का सम्मान बढ़ता है यश प्राप्त होता है । माँ अपने बिटिया रूपि पौधे की माली है उस पौधे की स्थिति से अंदाज़ा लगा लिया जाता है कि उसे कितनी लगन से खाद - पानी देकर बड़ा किया गया है ।
बेटी के सुख-दुख में बराबर उसके साथ खड़े रहें उसे सुकुन मिलता है किन्तु उसे आत्मनिर्भर बनने दें ।
गायत्री बाजपेई शुक्ला
रायपुर (छ .ग.)