vyangkatha- police ka chakravyuh by suresh bhatia

व्‍यंग्‍य कथा –पुलिस का चक्रव्‍यूह.

vyangkatha- police ka chakravyuh by suresh bhatia
मुंगेरी ने कसम खायी थी उसका कितना ही बड़ा नुकसान हो जावे, थाने में रिपोर्ट नहीं लिखाउंगा, पुलिस के नाम से उसे चिढ़ हो गयी थी थाने में लिखे “देशभक्‍ति, जनसेवा”, “सत्‍यमेव जयते” नेताओं के नारों की तरह खोखले उसे लगते थे जब भी वो किसी थाने के सामने गुजरता आंखे चुरा लेता था, सोचता इनसे जितना बचा जाये अच्‍छा है।
दरअसल मुंगेरी पुलिस के सताये एक भुक्‍त भोगी थे एक रात उनके घर चोरी हो गयी थी, मुहल्‍ले के लोगों ने सलाह दी “मुंगेरी भाई थाने में रपट लिखा दो” हालांकि होना जाना तो कुछ है नहीं। चोरी गया माल आज तक किसी को वापस नहीं मिला, फिर भी एक जागरूक शहरी होने के नाते रिपोर्ट लिखाकर पुलिस की मदद करना अच्‍छी बात है।
लोगों की सलाह पर मुंगेरी थाने जा पहुंचे,थानेदार ने गरजकर पूछा-
“क्‍या क्‍या माल चोरी हुआ?”
मुंगेरी ने सहमते जवाब दिया-
“60 हजार रूपये नगद एवं कुछ जेवर थे”
थानेदार ने घूरकर देखा
“इतने रूपये,जेवर कहां से लाया था ?”
“हर महीने वेतन से बचत करके जमा किये थे।”
“फिर घर में क्‍यों रखा ?” “सरकार ने जगह जगह बैंक लाकर खोले हैं उसमें जमा क्‍यों नहीं किये ? घर में माल रख कर चोरों को खुद निमंत्रण देते हो फिर रोते बिलखते चले आते हो थाने”... थानेदार ने उसे फटकारा।
“अब खड़े खडे़ मुंह क्‍या ताकते हो, मुंशी के पास रिपोर्ट लिखा दो।”
मुंगेरी मुंशी के पास आशा भरी नजर ले खडे़ हो गये, मुंशी ने पूछा-
“रिपोर्ट लिखकर लाये हो?”
“नहीं.... आप लिख लीजिये”
“किस पर लिखें? सरकार कागज कलम तो देती नहीं 100 रूपये निकालो तो कुछ इंतजाम करें, वरना घर से एक सादे कागज पर लिखकर लाओ।”
मुंशी ने रूखा सा जवाब दिया, मुंगेरी ने अपना मन मार कर 100 रूपये जेब से निकाल मुंशी को थमाये, तब कहीं मुंशी ने रजिस्‍टर खोलकर रिपोर्ट लिखी फिर अहसान जताते कहा .....
“अब बेफिक्र होकर घर जाओ हम तफतीश करने आ जायेंगे।”
2 दिन बाद 2 सिपाही को साथ ले, मुंशी ने मुंगेरी की सुध ली, मुंगेरी ने उन्‍हें चाय नाश्‍ता करवाया, तफतीश के नाम पर इधर उधर की पूछताछ कर मुंशी से पूछा-
“किसी पर शक है ?”
“जी नहीं, ”
“तो करो किसी पर भी शक करो, तुम्‍हारे आसपास कैसे लोग रहते हैं ? सालों को मार मार कर सब कुछ उगलवा लेंगें।”
मुंगेरी ने स्‍पष्‍ट जवाब दिया-
“मेरे पड़ोस में बहुत अच्‍छे लोग रहते हैं। मुझे किसी भी शक नहीं है।”
मुंशी ने खड़े होते हुए कहा-
“फिर ठीक है, हम अपने तरीके से सब पता कर लेंगे.....जरा 400 रूपया पेट्रोल का खर्च निकालो, हम 2 मोटर सायकिल से आये हैं”
रिपोर्ट लिखाकर मुंगेरी बुरी तरह फंस गया था, चुपचाप 400 रूपये उन्‍हें दिये वे गाड़ी का धुंआ उसके मुंह पर छोड़ते हुए फुर्र से उड़ गये.
इस तरह आये दिन मुंगेरी को पुलिस तफतीश के नाम पर ठगती लूटती रही, और वह मन ही मन स्‍वयं को कोसते हुए कहता, “ काश लोगों के कहने पर जागरूक नागरिक का बाना नहीं पहना होता”। चोर ने तो उन्‍हें एक बार लूटा था...परन्‍तु पुलिस आये दिन लूटने आ जाती थी।
एक दिन तो अजीब बात हो गयी।उन्हीं 2 सिपाहियों ने आकर कहा “चलो थानेदार साहब ने बुलाया है।”
मुंगेरी ने अपनी जेब कसकर पकड़कर पूछा।
“क्‍यों ?”
“एक चोर पकड़ में आया है।”
खुश हो मुंगेरी ने जेब की पकड़ ढीली की।
“उसके पास मेरा चोरी गया माल मिला ?”
“मिला तो है...परन्तु थानेदार साहब ने अपने घर पहुंचा दिया...अब तो चोर आपकी शिनाख्‍त करेगा। कम्‍बख्‍त को मार मार कर पूछा किस किस जगह चोरी की तो बोलता है मकान नहीं मकान मालिक को देख उसकी हैसियत का अंदाजा लगाकर चोरी करता हूं।”
बेचारे मुंगेरी चोर से अपनी शिनाख्‍त करवाने थाने पहुंचे, तो चोर ने उन्‍हें देख मुंह बिचकाते कहा.....
“मैंने इस फटीचर के यहां चोरी नहीं की।”
तभी मौके का फायदा उठाते हुए मुंगेरी ने मन ही मन पुलिस से छुटकारा पाने का विचार बना लिया। फिर थानेदार से निवेदन कर बोला...
“हुजूर मैं अपनी रिपोर्ट वापस लेता हूं, मेरे घर कोई चोरी नहीं हुई।”
इतना सुनते ही थानेदार एकदम भड़क उठा।
“इसका मतलब तुमने झूठी रिपोर्ट लिखवायी थी, पुलिस का समय बर्बाद कर गुमराह किया था।”
मुंगेरी ने कहा.....
“अब आप जो भी समझें, मेरी रिपोर्ट फाड़ दीजिये।”
थानेदार ने गरजकर मुंशी से कहा...
बन्‍द कर दो साले को...इसने झूठी रिपोर्ट लिखवायी , एक संगीन जुर्म किया है।”
तभी मुंशी ने मुंगेरी का हाथ पकड़कर समझाते हुए कहा-
“तुम्‍हें रिपोर्ट वापस लेनी थी, तो मुझसे कहते, अब साहब नाराज हो गये, उन्‍हें मनाने एवं रिपोर्ट फाड़ने के 5000 रूपये दे दो।”
मुंगेरी ने 5000 रूपये दे, मन ही मन सोचा पुलिस से जितनी जल्‍दी छुटकारा मिले अच्‍छा है। फिर थाने के बाहर निकल मुंगेरी ने कसम खायी .....
अब चाहे कितना ही बड़ा नुकसान हो जावे भूलकर भी थाने की ओर मुंह नहीं करेंगे।
परंतु होनी को कौन टाल सकता है, बेचारे मुंगेरी फिर मुसीबत में फंसे। एक दिन घर के सामने रखा उनका स्‍कूटर कोई उठा ले गया। मुंगेरी दूध के जले थे, छाछ फॅूंक-फूंक कर पीने लगे, अपनी कसम पर अडे़ रहते हुए रिपोर्ट नहीं लिखवायी, बस मन मसोस कर घर में बैठ गये।
समय गुजरता गया। मुंगेरी घर से दफ्‍तर पैदल आने-जाने लगे। परंतु जब भी कोई स्‍कूटर उनके बाजू से गुजरता वे उत्‍सुक्‍ता से देखते....कहीं यह उनका स्‍कूटर तो नहीं .....?
एक दिन उनकी उत्‍सुकता रंग लायी एक स्‍कूटर उनके पास से गुजरा। मुंगेरी ने देखा वही रंग, वही मॉडल, वही नम्‍बर यानि उनका अपना ही स्‍कूटर था। परंतु उस पर सवार एक सिपाही था। मुंगेरी ने खुश हो अॉव देखा न तॉव स्‍कूटर के पीछे दौड़ लगा दी।
सिपाही मस्‍ती से स्‍कूटर लहराता हुआ पास के थाने में जा घुसा। पीछे पीछे मुंगेरी हॉफता हॉफता बोला...
“यह स्‍कूटर मेरा है।”
सिपाही ने मुंगेरी को घूरकर देखा-
"तेरा कहां से आया ?"
“जी चोरी हो गया था ”
मुंगेरी ने अपनी सांस पर काबू पा जवाब दिया।
“क्‍या मतलब है तेरा...इसे मैंने चुराया ?”
सिपाही गरजा।
“जी मेरे कहने का मतलब यह नहीं है।”
मुंगेरी ने हड़बड़ाकर जवाब दिया।
“परंतु.....स्‍कूटर तो मेरा ही है।”
अच्‍छा स्‍कूटर तेरा है, तो चल थानेदार साहब के सामने फैसला कर लेते हैं।”
थानेदार ने मुंगेरी की पूरी बात सुन पूछा-“स्‍कूटर तुम्‍हारा है जो चोरी हो गया तो तुमने रिपोर्ट तो लिखवायी होगी ?”
“जी नहीं।”
“क्‍यों नहीं लिखवायी?”
मुंगेरी को कोई जवाब नहीं सूझा।
थानेदार ने उसे फटकारते हुए झूटा कहा.....
“सरकार ने लाखों रूपया खर्च करके थाना बनवाया, और हम लोगों को वर्दी पहनाकर जनता की जान-माल की रक्षा एवं सेवा की शपथ दिलवाकर बिठाया और तुमने रिपोर्ट नहीं लिखवायी? तुम जैसे लोग ही पुलिस को बदनाम करते हैं, रिपोर्ट नहीं लिखवाकर चोरों के हौसलें बुलंद करते हैं, उन्‍हें बढ़ावा देते हैं..... सजा चोरों को नहीं तुम्‍हें मिलनी चाहिए।”
मुंगेरी थानेदार का भाषण चुपचाप सुनता रहा, कथनी और करनी में कितना बड़ा फर्क होता है वह महसूस कर रहा था।
तभी पुनः थानेदार बोला।
“यह स्‍कूटर तुम्‍हारा है, इसका कोई सबूत है, तुम्‍हारे पास, मुंगेरी खुश हो एकदम बोला “जी कागजात हैं। और मैंने अपने नाम से ही स्‍कूटर खरीदा है।”
“ठीक है कागजात दिखाकर स्‍कूटर ले जाना।”
मुंगेरी कागजात लेने घर की ओर चल दिया। तभी उसी सिपाही ने टोका। “कागजात के साथ 3000 रूपये भी लेते आना। ”
मुंगेरी ने प्रश्‍नवाचक दृष्‍टि से उसकी ओर देखा, तो सिपाही अकड़कर बोला-“तुम्‍हारा स्‍कूटर शहर के बाहर लावारिस पड़ा था, जिसके कई पुर्जे गायब थे। मैंने उठाकर मैकेनिक को 5000 रूपये देकर ठीक करवाया, 2000 रूपये तो थानेदार साहब से लिये थे। अगर विश्‍वास नहीं हो तो पूछ लो साहब से।”
मुंगेरी की हिम्‍मत नहीं हुई थानेदार साहब से पूछने.... बस धीरे धीरे घर की ओर चल दिया। चलते चलते सोचने लगा, भ्रष्‍ट सिपाही, अफसर, चोरों के पाटों के बीच इस देश के लोग कब तक पिसते रहेंगे? उन्‍हें अपने सवाल का जवाब नहीं मिला.. और दूर दूर तक मिलने की संभावना भी नजर नहीं आयी।
सुरेश भाटिया
23, अमृतपुरी खजुरीकला रोड,
पिपलानी भेल, भोपाल
Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url