Khwabo ka jahan by Jitendra kabir
July 19, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
ख्वाबों का जहां
इस जहां से परे
न जाने कितने जहां बसते हैं,
हर शख्स यहां
अपने ख्वाबों का जहां लिए फिरता है।
घटती नहीं हैं चीजें जब
इस जहां में उसके हिसाब से
तो 'ख्वाब-जहां' में अपनी
दमित इच्छाओं का बहाव लिए फिरता है।
मिले चाहे न मिले उसे
यहां अपने मन का कुछ भी
लेकिन 'ख्वाब-जहां' में अपने
कल्पवृक्ष खुद के हजार लिए फिरता है।
मुश्किलें मिलती हैं अक्सर
बहुतायत में यहां हर किसी को
इसलिए 'ख्वाब-जहां' में अपनी
सब मुश्किलों का निदान लिए फिरता है।
अपनी नजरों में है हर इंसान
दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण इंसान,
'ख्वाब-जहां' में अपनी
वो इसी बात की तस्दीक किए फिरता है।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314
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