Manmohna by dr indu kumari
July 11, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
मनमोहना
मनमोहना इतना बता .
तू कहां नहीं हो
राधा मीरा रुक्मणि
के ही इर्द -गिर्द नहीं
तु तो हृदय के कण -कण में
जनसमूह के तन -मन में
प्रेम के गलियन में
श्रद्धा के आलिंगन में
मन मोहे रूप तुम्हारे
अपनी ओर सदा ही
खींचे ये मुस्कान तुम्हारे
तेरी कृपा जिन पर हो जाए
जीवन धन्य -धन्य हो जाए
जीव के पीव जब तु हो
फिरइतने दुर क्यों हो
मुस्कान बन होठों पर आओ
हमेंअपना निज कर्म
बताओ
सबकी पीड़ा हरने वाले
मेरी भी हर लो चितचोर
इन्दु की ये आस को मोहन
भक्ति से कर दो सराबोर
जगमग हो जाए चहुँ ओर
स्व रचित
डॉ. इन्दु कुमारी
हिन्दी विभाग मधेपुरा बिहार पिन 852113
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