Yadon ka sahara by hare Krishna Mishra
July 23, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
यादों का सहारा
अपराधी मैं तेरा हूं ,
सजा चाहे जो भी दो,
नहीं शिकवा नहीं गिला,
आंशू तो हमारे हैं ,
न बाटेंगे दर्द अपने,
बहुत विश्वास इस पर है,
खरा सोना अगर कोई,
कुंदन तो हमारा है ।।
गाए जा तू गीतों को,
रचना तो तुम्हारी है ,
गाया है तुम्हें हरक्षण ,
जीवन भर निभाएंगे,
मेरे प्रीतम मुझे भी गा,
यही तो कहती आई हो,
सुनाऊंगा तुम्हें हरदम
तेरी इच्छा हमारी है ।।
देखो अब लिखूंगा क्या,
बचा भी क्या है जीवन में,
शब्दों की कमी भी है,
ध्वनि तो गौण मेरा है ,
बना उपक्रम मेरा है ,
तेरे पास पहुंचने का ,
कैसा प्रयास मेरा है ,
रोने का बहाना है ।।
खोने का बहुत गम है,
पाना भी तो दुर्लभ है ,
रचनाएं तो अधूरी हैं ,
पूरा अब करेगा कौन ,?
रोने का भी मेरा क्या ,
कलम मेरी भी रोती है ,
दुख में भी क्या हंसना ,
दिखावा ही दिखावा है। ।।
खुशी जीवन में है कितनी ,
विद्वानों का विश्लेषण है ,
यह तो एक कोरामिन है ,
दुखों में गम भुलाने का ,
महादेवी के शब्दों में ,
दुख ही दुख है जीवन में ,
दुख में ही तो ईश्वर है ,
दर्द में ही तो दर्शन है ।।
करूं अर्पण समर्पण भी ,
यही मर्जी तो उसकी है ,
गीता सार का दर्शन ,
सुख-दुख को तो आना है,
तुम्हारा भी जो सपना था ,
जुड़ा था मैं वहीं तुमसे ,
विकल व्याकुल बहुत अब हूं,
यादों का सहारा है। ।।
मौलिक कृति
डॉ हरे कृष्ण मिश्र
बोकारो स्टील सिटी
झारखंड ।
Post a Comment
boltizindagi@gmail.com
If you can't commemt, try using Chrome instead.