सीमा का समर -पूर्वोत्तर
पूर्वोत्तर की सात बहने कहे जाने वाले दो राज्यों में आज सीमा का विवाद इतना गहरा गया कि वह खूनी संघर्ष में तब्दील हो गया। अब तो यह ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे सदियों की शहादत दी गई हो।पाँच जवानों की शहादत के बाद जुबानी जंग का तेज होना इस बात का द्योतक है कि यह राजनीति से प्रेरित संकटग्रस्त मुद्दा है । 164 किलोमीटर की लंबी सीमा का साझा संकलन, पूर्वोत्तर राज्यों के संघर्ष में शब्दों के सरगम ने एक अहम भूमिका निभाई । दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के व्यंग के तीखे बाण, दर्द से कराहते हुए किसान, का कोई मूल्य नहीं है। पुलिस के जवान अजेय युग को जीतने का दिवास्वप्न लिए बैठे हो।दोनों राज्य मानवता के मरुस्थल को प्रेम के रिश्ते के अटूट बंधन में नहीं बांध पाए। केंद्र सरकार की मध्यस्थता की इस खूनी संघर्ष विराम नहीं दे सकी। वस्तुतः दोनों राज्यों की सीमा की समस्या का समाधान संविधान की धाराओं के अंतर्गत ही निहित है। वर्तमान समय में दोनों राज्यों के सीमाओं के आर- पार जाने की इजाजत किसी को नहीं है। पूर्वोत्तर के राज्यों में तो आपसी सीमा विवाद सदियों से चला आ रहा है जो सिर्फ बातचीत के माध्यम से ही सुलझाया जा सकता है ,इसमें हिंसा का कोई स्थान नहीं हो सकता। सीमा विवाद की पांडुलिपियां आज इतनी अधिक हो गई है की दोनों राज्य स्वयं से संघर्ष करते हुए दिखाई पड़ रहे हैं। सीमा एक समस्या भी है लेकिन उसका समाधान भी है जिसका नाम है समझौता। कई बार देखा गया है कि सीमा विवाद में समझोता एकपक्षीय होता है लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए। केंद्र सरकार का यह नैतिक दायित्व बनता है कि मामले में हस्तक्षेप कर समझौता द्विपक्षिय राष्ट्रहित में करें।
मौलिक लेख
सत्य प्रकाश सिंह
केसर विद्यापीठ इंटर कॉलेज प्रयागराज उत्तर प्रदेश