Aabhasi bediyaan by Jitendra Kabir
September 22, 2021 ・0 comments ・Topic: poem
आभासी बेड़ियां
पिंजरे का पंछी
उससे बाहर निकलकर भी
उड़ान भरने में हिचकिचाता है
बहुत बार,
वो दर-असल कैद है
कुछ खुद की बनाई
मर्यादाओं में
और कुछ समाज की खींची
लकीरों में,
सुदूर आकाश में आजाद
उड़ने की उसकी तमन्ना
सिर उठाती है बहुत बार
लेकिन परिणाम की सोच कर
ठंडा पड़ जाता है
खून का उबाल,
अनंत आकाश का आकर्षण
जहां उसकी
जिंदादिली को ललकारता है
वहीं प्रतिकूल परिणाम का डर
मजबूर करता है उसको
पिंजरे की कैद में
लगातार बने रहने के लिए।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र - 7018558314
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