Barsaat ki ek rat by Anita Sharma
बरसात की एक रात
इक रात अमावस की थी,
बरसता था पानी।
रह-रह कर दामिनी भी थी,
जोरो की कड़कड़ाई।
आकाश में भी काली घनघोर,
घटायें छाई ।
एकान्त सूनसान मार्ग में पसरा,
था सन्नाटा ।
तेज थी बारिश न सूझती थी राहें ,
भयावह गहन रात्रि ।
मन में भय था न कोई ठिकाना।
थी चाल मद्धम कार बढ़ रही।
बरसात की वो रात हम थे अकेले,
जंगल से गुजर रहे थे।
न भूलती वो रात हम थे अकेले ,
घनघोर गर्जना थी ।
सहमे हुए थे भय से और बढ़ रहे थे,
न थम रही बरसात थी ।
न राह सूझती थी डगर भयावह ,
मुश्किल में जान आई।
ईश्वर का आसरा था और भरोसा भी,
मन में प्रार्थना थी ।
जब कुछ थमा था पानी जान में जान आई।।
बरसात की वो रात हम थे अकेले।।
---------अनिता शर्मा झाँसी
-------मौलिक रचना