Shanti aur prem ki chah by Jitendra Kabir
शांति और प्रेम की चाह
कोई कितना भी
क्रूर हुआ,
हत्यारा हुआ,
झूठा,पाखंडी और चोर हुआ,
पर समाज के सामने
सच्चा,अच्छा और महान
कहलाने का जरूर
अभिलाषी हुआ।
झगड़ालू व लड़ाकू
भी हुआ
लेकिन जीवन के
उत्तर काल में
शांति और प्रेम का
हिमायती हुआ।
खुद अगर कोई
बुराई की दलदल में
फंस ही गया
तो अपने करीबियों को
उससे दूर रखने का
अभिलाषी हुआ।
इतनी सी बात से
समझा जा सकता है
कि अपनाया जरूर किसी ने
बुराई को परिस्थितियों
के चलते,
पर दिल से वो बुराई का
कभी भी
मुरीद न हुआ।
जितेन्द्र 'कबीर'
यह कविता सर्वथा मौलिक अप्रकाशित एवं स्वरचित है।
साहित्यिक नाम - जितेन्द्र 'कबीर'
संप्रति - अध्यापक
पता - जितेन्द्र कुमार गांव नगोड़ी डाक घर साच तहसील व जिला चम्बा हिमाचल प्रदेश
संपर्क सूत्र _7018558314