कविता- माई से- सिद्धार्थ गोरखपुरी
कविता- माई से
हम कितने क़ाबिल है
ये कमाई तय करती है।
हम हमेशा से क़ाबिल हैं
ये बस माई तय करती है।
हमारे इज्जत का पैमाना
तय होता है कमाई से।
हमको नाक़ाबिल कहा है
कितने लोगों ने माई से।
हम खुद को लेकर संजीदा हैं
ये किस - किस को बताते चलें।
सभी नासमझ समझते हैं मुझे
हम किस - किस को समझाते चलें।
सभी का मत एक जैसा है
हम किस- किस को दुहाई दें।
हमको नाक़ाबिल कहा है
कितने लोगों ने माई से।
समय बदलते वक्त न लगता
ये अरसे से सुनता आया हूँ।
लोगों के कहे से बेफिक्र होकर
अपनी धुन धुनता आया हूँ।
न जाने कब ऐसा होगा
कि पीछा छूटेगा तन्हाई से।
हमको नाक़ाबिल कहा है
कितने लोगों ने माई से।