किसका कार्य?-डॉ. माध्वी बोरसे!

 किसका कार्य?

किसका कार्य?-डॉ. माध्वी बोरसे!आज 21वीं सदी में, हम पूरी तरह से दकियानूसी सोच से आजाद हो चुके हैं, फिर भी बहुत से व्यक्ति इस से आजाद नहीं होना चाहते हैं, पुरुष को लगता है की घरेलू कार्य सिर्फ महिलाओं के लिए है, वहीं बहुत सी महिलाओं को भी लगता है नौकरी करना और पैसे कमाना या कोई तकनीकी कार्य सिर्फ पुरुषों का है! 

हालांकि, बहुत से लोगों ने इन दोनों ही कार्यों को जिम्मेदारि से अपनाया और वही सही मायनों में शिक्षित कहलाए जा सकते हैं! ऐसी कोई किताब में नहीं लिखा हुआ है यहां तक की हर एक पुस्तक में हमें विज्ञान हो चाहे नैतिक शिक्षा हो, उसमें यही सिखाया गया है क्लीनलीनेस इस नेक्स्ट टू गॉडलीनेस और यह सभी को सिखाया गया है, और उसी को हिंदी में भी प्रसिद्ध कहावत में कहा गया है की स्वच्छता भक्ति से भी बढ़कर है, वही जो पाठशाला में कोई भी तकनीकी ज्ञान सिखाया जाता है तो वह सभी को सिखाया जाता है!

यदि हम समाज में समानता चाहते हैं, तो हमें सभी कार्यों को अपनाना होगा और यह भेदभाव करना बंद करना होगा कि यह कार्य महिलाओं का है और यह कार्य पुरुषों का है!

जब तक आप दोनों कार्यों को नहीं संभालते तब तक आप इन सब का महत्व भी नहीं समझ पाएंगे, आज भी बहुत से पुरुष महिलाओं को यही कहते हैं, करती क्या हो तुम पूरे दिन? वहीं महिलाएं नहीं समझ पाती की धन कैसे कमाया जाता है और इसीलिए शॉपिंग में और किटी पार्टीज में कभी-कभी पानी की तरह धन बहा देती है!

हर कार्य को करने में मेहनत होती है और हमें तब तक नहीं पता चलेगी जब तक हम उस कार्य को कर ना ले, तभी हम एक दूसरे का सम्मान, और कार्यों का महत्व जान पाएंगे! 

अगर कोई महिला चाहती है की उसे हर वक्त घरेलू कार्य में ना उलजना पड़े तो उसे भी नौकरी करना आवश्यक है वहीं अगर कोई पुरुष ऐसी महिला से विवाह करता है जो नौकरी करती है तो उसे भी घरेलू कार्य आने चाहिए! 


आज भी बहुत सी महिलाओं को धन कमाना भार लगता है वहीं बहुत से पुरुषों को घरेलू कार्य करने में शर्म आती है! सदियों से यही होता आ रहा है एक व्यक्ति घर में कमा रहा है तो बाकी बैठकर खा रहे हैं वही एक सारे घर के कामों को कर रही है तो बाकी मजे से रह रहे हैं! आज के समय में एक दूसरे का हर तरह से हाथ बटाना बहुत जरूरी है!

मम्मी या पापा दोनों को ही हर तरह से, सारे कार्यों को सीखना चाहिए कि अगर बच्चे को भूख लगी हो या बाहर कुछ खरीदने को कहे तो हमारी आंखें एक दूसरे को ना ढूंढते हुए स्वाभिमान से उसकी जरूरतों को पूरी कर सके! जिस दिन हमारे देश में, यह कार्यों का भेदभाव समाप्त हो जाएगा और हर पुरुष यह समझेगा छोटे-मोटे घर के कार्य करने से उनका स्वाभिमान बढ़ेगा ना कि घटेगा और हर महिला कार्य करने लगेगी, तकनीकी शिक्षा को अपने जीवन में उतारेगी उस दिन हमारा देश बहुत ही आगे होगा, जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं!

चलिए बटाते हैं एक दूसरे का हाथ,

कभी ना छोड़े एक दूसरे का साथ,

यह तुम्हारा कार्य, यह मेरा कार्य ना करें,

करते हैं सिर्फ स्वाभिमान और समानता की बात!

डॉ. माध्वी बोरसे!
लेखिका !

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