Sabse nalayak beta lagukatha by Akansha rai

 लघुकथा
सबसे नालायक बेटा

Sabse nalayak beta lagukatha by Akansha rai

डॉक्टर का यह कहना कि यह आपरेशन रिस्की है जिसमें जान भी जा सकती है,मास्टर साहब को विचलित कर देने वाली बात थी ।आपरेशन के बिना रोग के बढने का खतरा था अतः बहुत सोच-विचारकर मास्टर साहब ने यह आपरेशन करवाने का फैसला लिया था।आज आपरेशन थियेटर में जाते हुए मास्टर साहब के चेहरे पर मृत्यु का भय स्पष्ट दिखाई दे रहा था।

शायद डॉक्टर ने भी इस भय को ताड़ लिया था अतः उसने मास्टर साहब को सहज करने के लिए बातचीत शुरू करते हुए पूछा-आपके परिवार में कौन-कौन है सर?मास्टर साहब हल्की सी मुस्कुराहट के साथ बोले-जी,बहुत बड़ा परिवार है।तीन बेटे-बहू और सात पोते-पोतियाँ।

‘सब लोग साथ में रहते हैं?’

‘नहीं, बड़े बेटे और सबसे छोटे बेटे का परिवार साथ में रहता है।मँझला बेटा रेलवे में है तो वह अपने परिवार के साथ बाहर ही रहता है।’

‘अच्छा,बाकी दो बेटे क्या काम करते हैं?’

‘जी,बड़ा बेटा तो खेती करता है और सबसे छोटा बेटा किसी काम का नहीं है।किसी काम में उसका मन ही नहीं रमता।’

‘आपके साथ यहाँ हास्पिटल में कौन आया है सर?’

‘जी,और किसको फुर्सत है अपने काम से।छोटा वाला ही नालायक और निकम्मा है,जिसके पास कोई काम नहीं है…..यह कहते-कहते मास्टर साहब बेहोशी की दवा की गिरफ्त में आ चुके थे।तभी दरवाजे पर हाथों में आपरेशन की सामग्री तथा आँखों में आंसू लिए मास्टर साहब के छोटे बेटे ने दस्तक दी।

डाक्टर ने सामग्री लिया तथा बेटे को बाहर इंतजार करने को बोलकर आपरेशन थिएटर का दरवाजा बंद कर लिया।


-आकांक्षा राय

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