उड़ गई तितली- देवन्ती देवी चंद्रवंशी
उड़ गई तितली
कैसे कहूॅ॑ सखी कुछ कही न जाए
मन हुई तितली देखो उड़ती जाए
कैसे रोकूॅ॑ मेरी बावरी हुई है मन
कैसे रोकुॅ॑ प्रीत की आग लगी तन
सुन सखी मैं पिया को खत लिखी
तितली सी उड़ती हुई मन लिखी
तुम्हारे लिए प्यार विरह की राग में
कब तक जलूॅ॑गी ,तड़पती आग में
तितली सा हुई मेरी मन रोकूॅ॑ कैसे
प्रीत लग गई, तुम जैसे परदेसी से
खत पढ़के साजन तुम आ जाना
प्यार से मुझको तुम गले लगाना
पिया,फूलों से सजी लगी है झूला
आ जाओ मिलकर झूलेंगे झूला
सावन में किए थे वादा याद करो
प्यार की मौसम है ना बर्बाद करो
तितली सा हुई है मन रोकूॅ॑ मैं कैसे
उड़ती जाए मन गगन की राहों से
टूट गई सपना ,मन आ गई वापस
कहती देवन्ती प्यार में रख साहस